Monday, 19 May 2025

मैं बिखरे रिश्तों को

मैं बिखरे रिश्तों को
 हाथों की अंजूरी में  ‌
बटोर लेना चाहती हूं
 जैसे की मोती हो! 
 मैं उलझे रिश्तों की डोर को
 धागों जैसी सुलझाना चाहती हूं 
 जिससे रिश्तो की डोर 
 अनंत आकाश छू सके! 
 मैं रिश्तों के दरार को 
 विश्वास की सीमेंट से
 भर देना चाहती हूं 
 कभी विलग ना हो! 
 मैं टूटते रिश्तों को टूटे बरतनों जैसी 
 प्यार के फेबिकॉल से 
 चिपका देना चाहती हूं 
 कभी उखड़े नहीं अपनी जडों से! 
 मैं ज़िन्दगी में आने वाले 
 अजनबियों से भी रिश्ता 
 बना लेना चाहती हूं 
 कुटुंबों की संख्या में नित बढ़ोत्तरी हो! 
 मैं जीवन में सदा के लिए छोड़ दिए रिश्तों का
 इंश्योरेन्स करवा देना चाहती हूं
 ताकि वो जीवन में और जीवन 
के बाद भी सदा साथ रहे! 
 रिश्ते डेबिट कार्ड जैसे है 
 जिन्हें मैं हर पल संभाल कर 
 पास रखना चाहती हूं जब 
जहां चाहो वहां भंगा लूं 
 नज़र से दूर फिर भी पास।

                                                                                
 कुमारी अर्चना 
 मौलिक एवं अप्रकाशित रचना 
कटिहार, बिहार 
 

Wednesday, 30 April 2025

"मृत्यु प्रमाणपत्र"

  "मृत्युप्रमाणप्रत्र"

जन्म के नाम पते के साथ 
प्रमाणपत्र मैं ही देता हूं 
यहां तक उसकी मृत्यु को भी
अभिपुष्ट मैं ही करता हूं 
मैं मुत्युप्रमाणप्रत्र हूँ!

करोनाकाल में नगरनिगम के पास 
माता पिता दोनों के अलग अलग 
पुत्र के मृत्यु का आवेदन आया
मैं सोच में पड़ गया
ऐसा कौन सा युग आया
देखा पहला आवेदन किसका आया
मां ने पहले आवेदन अर्ज किया था
नगरनिगम के महीनों चक्कर लगाने पर
ये फैसला उपमेयर का आया
पहला हक जन्मदाता का है
पालक का स्थान द्वितिय है
पूजन मैं तो पहले लक्ष्मी फिर गणेश है
राधा फिर कृष्ण है शक्ति फिर शिवा है
फिर ये भेदभाव क्यों जग में है!

मां ने पहले जाकर मृत्यु प्रमाणपत्र पाया
पर अपने नाम में त्रुटि पाया
कम्प्यूटर स्टाफ ने अस्पष्ट लिखावट 
आवेदक की गलती बताया
जो की पिताजी ने लिखा था
महीनों चप्पल घिसने पर
नाम में सुधार न हुआ
पिताजी के आवेदन को
फिर से जमा करने कहा गया

मां को कोरोना का लाभ मिला
पिताजी को गुस्सा आया
मैंने आज तक पढ़ाया लिखाया 
तुमने क्या किया उसके लिए  
मां का जबाव आया नौ महीने कौख में पाला।
इन्सोरेन्स के पैसे भी मिले
सत्य की ही जीत हुई
कोरोना ने दुनिया को
रिश्तों का सच दिखाया।

कुमारी अर्चना 
मौलिक रचना
कटिहार,बिहार

Saturday, 5 April 2025

"कोरोना महासंकट"

कोरोना  महासंकट

विरान सड़के
एके दूके बिखरे लोग
उजड़ गया हो किसी का चमन
भय का पसरा सन्नाटा
माता माई आई या
महामारी बनकर आईं
भेद समझ नहीं आई!

बिमारी से कम मरते लोग
उसे ज्यादा भूख से बिलबिलाते
दुर्घटना में काल कलवित
तूफान से उजड़ जाते लोग!

बचाव में कभी बार बार
अपना हाथ धोते लोग
हाथ किसी से न मिलाते
दूर से राम राम कहते लोग
भिड़भाड़ से दूर रहते लोगों!

कहते चायना के लेब से आईं
प्राणघातक है ये बिमारी
कोई कहता चमगादड़ो से
ये वायरस बनकर  वुहान शहर से
दुनिया के नौ देशों को छोड़
पूरी दुनिया में अपने पांव पसारे !

जीवन संकट उत्पन्न कर चुका
चीन में मौतों का आकड़ा
आज भी बना हुआ रहस्य
भारत में लाख से पार
इटली,स्पेन में लाशों की ढेर
अमेरिका की महाशक्ति डोली
कोरोना की दवा न बना सकी
हे राम अब तुम ही कोरोना
जैसे सक्रमण फैलाने वाले
वायरस से सृष्टि को मुक्त
करने का कोई उपाय सुझाव!

कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना
कटिहार बिहार

Monday, 31 March 2025

"मां मैं अब ना वापस आऊंगा"

"माँ मैं अब ना वापस आऊँगा"

मां मैं अब ना वापस आऊंगा
फिर से अपने घर को लौटकर 
ऑक्सीजन सिलेंडर पहले से तुम
मोहे अगले जन्म मंगवा कर ही रखना 
जाने कौन सी जानलेवा बिमारी हो जाएं 
मेरा साथ कोई दुर्धटना घटित हो जाएं 
जाने कब मुझे इसकी जरूरत पड़ जाएं।

ये भारत देश है यहाँ आदमी को
जनसुविधाओं का अभाव में 
जीना पड़ता है या मरना पड़ता है
सड़ चुका है यहाँ का सरकार तंत्र 
अस्पतालों से जीवनरक्षक दवाएं 
और डाॅक्टर हो गए बहुत ही कम
बेबस लाचार हो चुका है जनतंत्र 
जय हो जय हो भारत गणतंत्र!

कुमारी अर्चना
सहायक प्राध्यापिका 
एम जे. एम. महिला कालेज, कटिहार 
कटिहार,बिहार
मौलिक रचना 
31/03/25

Sunday, 30 March 2025

चरित्रहीन आदमी

चरित्रहीन आदमी"

उस आदमी के हत्या करने का
बार बार मन में विचार आता है
जिससे रिश्ता पालकर्ता का है
पर मरे को मारना कहाँ उचित है
जिसका आत्मा मर चुकी हो!

जिसने कभी गोद में खिलाया
हाथ पकड़ कर चलना सिखाया
साइकिल पर दौड़ना सिखाया
बेटी को भी बेटे के बराबर माना
बाहर पढ़ाई के लिए भेजा
पांव पर खड़ा होने लायक बनाया!

आखिर क्यों?उस आदमी के
हत्या का विचार मेरे मन में आया
सोचती हूँ वो परिवार कितना 
विवश हो जाता होगा जो
इस अपराध को अंजाम देता होगा
अवैध संबंध जाने कितने ही
घरों को बर्बाद कर रख देता हैं!

जवान बेटियाँ बिन हाथ
पीले हुए ही बुढ़ी हो जाती
कुछ मजबूर होकर भाग जाती
बेटे सम्पत्ति के लालसा में
पिता का ही साथ देते है व
समाजिक प्रतिष्ठा बचाते हैं
पत्नी को अपेक्षित छोड़
लोग उप पत्नियों रख लेते
जो रिश्ते में कुछ लगती है!

पर कहाँ लोक लाज का भय
स्त्रियों के मन में होता है जब
वो तृया चरित्र पर उतर आती
पुरूष तो ढ़ीठ होते ही है
काम सुख के आगे उनकी
बेटी भी नहीं दिखती है
ब्राह्मा जी इसी अपराध वश
अन्य देवताओं की भांति पृथ्वी
पर कहीं पूजे नहीं जाते हैं!

मैं उनकी हत्या कभी नहीं करूंगी
ये कानून की नजर में अपराध है
धर्म के अनुसार पाप होता है
सुना है ईश्वर सबको उसके
किएं हुए कर्मो का फल देते है
उस पापी को भी दंड अवश्य मिलेगा
क्योंकि किया हुआ पाप छुपता नहीं!

कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना
पूर्णिया,बिहार

Saturday, 29 March 2025

मेहंदी हूं मैं

"मेंहदी हूँ मैं "

मैं स्त्री मेंहदी जैसी ही हूँ
मेंहदी भी खुद पिसकर
दुसरों के हाथों में रंग भरती है
मैं स्त्री भी जिन्दगी भर
खुद पिसकर पुरूषों के
जीवन मेंखुशियाँ लाती हूँ !

कभी पिता के मान के लिए
कभी प्रेमी के प्यार के लिए
कभी पति के सम्मान के लिए
कभी पुत्र के दुलार के लिए
कभी परम्पराओं के नाम पर
कभी वंश के नाम पर
कभी संस्कारों के नाम पर
कभी परिवार के नाम पर
मुझे मेंहदी बनना पड़ता है 
तो कभी बना दी जाती हूँ !

स्त्री हूँ मैं इसलिए
मुझे पिसना होगा
मुझे घिसना होगी
मुझे टूटना होगा
मुझे मिटना होगा
मुझे दया रखनी होगी
मुझे लज्जा करनी होगी
यही मेरा गहना है !

मेरा स्वाभिमान
मेरी वजूद
मेरा शरीर
मेरा गर्भ
मेरा अघिकार
मेरी स्वतंत्रता
सब मेरे कक्तव्यों व दायित्वों के अधीन है
क्योंकि मैं स्त्री मेंहदी जैसी हूँ !

कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
६/५/१८

Friday, 28 March 2025

"धन्य गई मेरी कलम"

धन्य हो गई मेरी कलम
जो तुमको शब्दों में लिखती है
और लिखती रहेगी जब तक
तुम चाहोंगे......
क्योंकि तुम मेरे मन की
वो शक्ति हो जिसे
मेरी कलम मेहसूस करती है.....
इसलिए तो चलती रहती है
बिना रूके बिना थके बिना
मेरे कहें मेरी काव्यों के पन्नों पे!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
23/12/18