हाथों की अंजूरी में
बटोर लेना चाहती हूं
जैसे की मोती हो!
मैं उलझे रिश्तों की डोर को
धागों जैसी सुलझाना चाहती हूं
जिससे रिश्तो की डोर
अनंत आकाश छू सके!
मैं रिश्तों के दरार को
विश्वास की सीमेंट से
भर देना चाहती हूं
कभी विलग ना हो!
मैं टूटते रिश्तों को टूटे बरतनों जैसी
प्यार के फेबिकॉल से
चिपका देना चाहती हूं
कभी उखड़े नहीं अपनी जडों से!
मैं ज़िन्दगी में आने वाले
अजनबियों से भी रिश्ता
बना लेना चाहती हूं
कुटुंबों की संख्या में नित बढ़ोत्तरी हो!
मैं जीवन में सदा के लिए छोड़ दिए रिश्तों का
इंश्योरेन्स करवा देना चाहती हूं
ताकि वो जीवन में और जीवन
के बाद भी सदा साथ रहे!
रिश्ते डेबिट कार्ड जैसे है
जिन्हें मैं हर पल संभाल कर
पास रखना चाहती हूं जब
जहां चाहो वहां भंगा लूं
नज़र से दूर फिर भी पास।