Wednesday 17 April 2019

"नोटा भी है एक विकल्प"

चुनावी मौसम में अब
अविकल्प नहीं रहे हम
नोटा विकल्प हमारे पास
आओ नोटा का बटन दबाएं
जनता है जनार्दन बतालाएं!
"नोटा" इसमें से कोई नहीं
हमारा है जनप्रतिनिधि
लोकतंत्र में शक्ति का श्रोत
"हम भारत के लोग है"!
2015 से पूरे देश में लागू है
2013 से विधानसभाओं में
नोटा एक" महावाकल्प"बना
2018 में नोटा को भारत में
हरियाणा राज्य के पाँच जिलों के
नगर निगम के चुनाव में
पहली बार उम्मीदवारों के समक्ष दर्जा है मिला!
नोटा के विजय रहने पर
सभी प्रत्याशी अयोग्य धोषित
व पुन:चुनाव करवाया जाएगा
जबकि पहले दूतीय स्थान पर रहे
प्रत्याशी को विजय माने जाते थे!
विश्ववाणी विवेकाधिकार मंच ने
नोटा का प्रचार प्रसार किया
संजीव वर्मा ने साॅशल साइट्स पर
मतदाताओं को जागरूक है बनाया
जय हो नोटा जय हो नोटा
लोकतंत्र की पहचान है नोटा!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना
कटिहार,बिहार

"जाॅनी तू रैम नहीं था"

जाॅनी तू रैम नहीं था जो
मैं तुम्हें भूल जाऊँ
तू तो मेरे बच्पन का प्यारा दोस्त था
जिसके साथ मैं खेला करती थी
रस्सी कूदा करती थी
गाने के धुन पर दोनों
साथ साथ झूमा करते थे
जब स्कूल से आते तो
घर के बाहर हमारा इंतजार किया करता था
जब हम भाई पढ़ते थे चुपचाप सुना करता था
बोलने पर मुढ़ी हिला दिया करता था
जैसे सब समझ रहा हो!
ओ जाॅनी तुम कितने प्यारे
और कितने अच्छे थे
दिन में गौ माता की और
रात घर की रखवाली में
सदा मेहनत की खाते थे
तुम बिमार होने पर भी
दरवाजे के बाहर कदम नहीं रखते थे
वफादारी तुम्हारे ख़ून में भरी पड़ी थी
कभी किसी बड़े या छोटे बच्चों को काँटते नहीं थे
बस सूंघ कर छोड़ देते थे
बाद धीमे धीमे भौ भौ कर
अपना फर्ज पूरा करते थे
तुम पर जाने कैसे दूर से ही
किसी अजनबी को देखकर
जोर जोर से भैंकने लगते थे
तुम मज़ाल है कोई घर में घुस जायें
उसे तुम से होकर गुजरना होगा
जाॅनी जाने कैसे तुम्हें
खतरनाक बिमारी लग गई
बहुत इलाज कराया
सरकारी जानवरों के असापताल में
पर जहाँ पर इन्सानों के लिए
बढ़िया सुविधा,दवा और डाॅक्टर कम हो
वहाँ जानवर का इलाज कौन करता है
छोटे शहरों और गाँव में क्या विदेशी नस्ल
क्या देशी सब है बराबर
बस पशु खरीदने वक्त शूल्क का फर्क होता
मरने के बाद जानवरों को
शमशान में दफ़नाएं यहाँ वहाँ ना फेंके
पर हमने जॉनी को अपने
घर के बगीचे में गाड़ दिया
कोई जानवर ना उसे खा जाए
उसकी आत्मा आज भी
मेरे घर की रखवाली करती
तभी तो आजतक कभी मेरे घर चोरी ना हुई
जॉनी तू रैम नहीं था
जो तूझे भूले से मैं भूल जाऊँ
जितना प्यार तुझे किया और
किसी कुत्तों को नहीं
पापा बहुत सारे देशी कुत्तों को पाले
पर वो ना जॉनी की जगह ले सके
ना मेरे दिल में जगह बना सके
आई लव यू जॉनी!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
पूर्णायाँ,बिहार
मौलिक रचना

"ओ मेरी लिलि"

ओ मेरी लिली
तुमने मुझ अपना फैन्स बना लिया है
कल तक गुलाब की दिवानी थी!
लिलि तो लिलिएसी कुल का
वनस्पति नाम "लिलियम"है
इसके पौधे बड़ा कठोर है
ये कंदीय शाक सी होती
फूल होते कीपाकार है
सुन्दर,आकर्षक चमकदार
सफेद,लाल,पीला,
गुलाबी,नारंगी रंगो के!
सुगंध की बड़ी ख्याती
आकृति से भी विख्यात है
पाखुड़ियों में बाहर से भूरी
,गुलाबी वर्णरेखाएँ होती
अंदर से पीली और श्वेत आभा छुपी रहती!
लिलि की विभिन्न प्रजातियाँ
टाइगर लिलि,माडोना लिलि,
जापानी लीली,श्वेत ऐस्टर लिलि
फुटबाॅल लिलि,वाटर लिलि है
ओरिएंटल लिलि अपनों से
बड़ो को दी जाती है
जबकि नारंगी लिलि माफ़ी के लिए!
लिलि करती है कई रोगों का जैसे
गर्भवस्था में मतली को कम कर देती है
और आक्रमक प्रवृत्तियों को भी
करती आध्यात्मिक उपचार!
लिलि का एक पौधा में
अपने प्रियतम को भी मैं दूँगी
जब ललहलाएंगे उसके बागों में
उसको अपनी लिलि "अर्चना"की यादा आएगी
दोनों के प्रेमपुष्प सदाबहार रहेगें!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना
पूर्णियाँ,बिहार

"मौन दस्तावेज"

मौन दस्तावेज लिख रही
तुम पढ़ सकते हो तो पढ़ो
क्या लिखा है मैंने तुम्हारे नाम
लिख सकते हो तो लिखो जबाब
मेरे आँसूओं से लिखा खत
समझ सकते हो तो समझो
दवात से अपना संदेश लिखो!
मेरे टूटे हुए दर्दे दिल को जोड़ कर
भेज सकते हो तो भेजो
वाट्सअप या मैसेजर पर
नहीं ना इस्ट्राग्राम पर ना विवर पर
ना ही लाइक ना इमो पर
ना ट्यूटर ना फेसबुक पर
पत्र लिखकर डाकिया से भेजो
सच्चा प्यार प्रेम पत्र में ही आता
बाकी मैं भावना शून्य है!
सरकारी नौकर हो जी
फाइलें तुम्हारी तो नीचे से ऊपर जाते जाते
कहीं मैं बूढ़ी ना हो जाऊँ
बिना घूस खिलाए आगे नहीं
बढ़ता सरकारी काम काज
मेरा मौन दस्तावेज को तुम ही
केवल समझ सकते
मेरे नाम से क्या लिखा है!
जो तुम्हारे नाम के पहले अक्षर से शुरू
होकर उसी अक्षर पर खत्म होता है
मैं भी तुम से शुरू तुमपर शेष हूँ
कहीं अवशेष ना हो जाऊँ!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना
पूर्णियाँ,बिहार

Friday 12 April 2019

"क्या ये धर्म है केवल कर्मकांड"

मुढ़न धार्मिक संस्कार
या पाखंड केवल
पैसा कमाने चोचले!
सभी धर्म फिर क्यों नहीं मानते?
व्यावहारिक तो यह है कि
बार बार बाल हटाने से
नये व मजबूत बाल आते!
फिर रीति रिवाज से
विधि विधान से उपनयन क्यों?
जो ना पहने जनऊँ वो शुद्र क्यों?
क्या भगवान ने इन्सान को
जाँत पाँत में धर्म कर्म में बाँट कर भेजा था!
फिर भी धर्मो के बंधन से लोग कर्मबंध जाते हैं
कोई जीवन भर बाल नहीं काटता
दाढ़ी मूँछ को बढ़वाता
मन ही मन अपनी इच्छायें को मारता!
कोई यौवन में गुरू का नाम लेता
कोई ज्ञान का पाठ पढ़ाने मंक बन जाता!
अभी सांसारिक जीवन जिया नहीं
दु:ख कष्ट ना आया उसके पाले में
बैरागी हो साधना में चला गया
तो कोई स्त्री को दैवी बना
खुद उसका भोग किया
ये कैसा है तुम्हारा धर्म?
जहाँ ना खुद जीव मन का जिया
ना अपने मन का किया!
जब ऊपर व्यक्ति के साथ
उसके कर्म जाते तो फिर
आड़बरों का लागलपेट क्यों
जीने दो उसको आडंबर मुक्त!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना
कटिहार,बिहार

"माला"

माला की खूबी है
जो धारण करे वही
खुद को भगवाम समझे
गदगद उसकी छाती
छत्तीस इंच चौड़ी हो जाती!
जैसे ही माला उतरता है
भगवान बनना आसान काम नहीं
उनके भेजे में समझ आ जाता
सदा दिखावा करते रहना आसान काम नहीं
घरती पर नेतागण जनता जनार्दन के
अनुनय को अस्वीकार नहीं करते है
परन्तु धन धान्य लेने के बाद ही!
पर भगवान चाहे तो चढ़ावा दो या नहीं
वो मन की बात सुन लेते है
बस मन में श्रद्धा कूट कूटकर भरी हो!
माला भी भली भाँति जानती है कि
वो किसके गले में जा रही
भगवान या शैतान के!
खूशबू तो दोनों जगह देती है
भगवान के गले में जाकर जब
सबकी मन्नत पूरी करती है!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना
पूर्णियाँ,बिहार

"ग़ज़ल"

ख़्वाब आते रहेंगे
जख़्म सीते रहेंगे
भूखे है गूर्बतों में
भूख सहते रहेंगे
हम अंधेरा मिटाने
दिल जलाते रहेंगे
उम्र के साथ अपने
दर्द बढ़ते रहेंगे
नज़्म हर पल सुनाऊँ
गर वो सुनते रहेंगे
मुल्क की शान में हम
सिर कटाते रहेंगे!
"अर्चना"इश्क मत कर
रोज मरते रहेंगे!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना

Sunday 7 April 2019

"ग़ज़ल"

है कौन शख़्स जो तेरी तक़रीर में नहीं
मैं हूँ फ़क़त तो एक जो तश्हीर में नहीं!
अल्फ़ाज मेरे यूँ ही जिगर चीर देते है
तेजी है ब़र्क सी किसी शमशीर में नहीं!
ताबीर ख़वाब की हो मुक्कमल तुझी से
जाँ मैं जानती हूँ तू मेरी तकदीर में नहीं!
जो बात तेरे हुस्न में है रूबरू सनम
वो आँख की हया तेरी तस्वीर में नहीं!
फौलाद का बना तेरे बाजू कहाँ हो कैद
ताकत किसी भी लोहे की जंजीर में नहीं!
सरहद पे है जवान जिसे फिक्रे जाँ नहीं
तैयार देने जान की ताख़ीर में नहीं!
'बिट्टू' तेरे ये तीर निशाने पे यूँ लगा
रफ्तार जिनकी शोला -ए- तन्वीर में नहीं!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
औपूर्णियाँ,बिहार मौलिक रचना

"मेरी पाउडर"

मेरा रंग गोरा था
पर माथा श्यामला था
किसी ने कहा खूब उबटन लगाओ
गोरा हो जाएगा कुछ ना हुआ!
फिर किसी ने कहा क्रिम लगा
ऊपर से पाउडर लगाओ
रातों को जाग जाग लगाया
फिर समझ आया पाउडर व क्रिम लगाकर
ना कोई गोरा बना है ना कभी बनेगा
सोर्दय प्रसाधन बस एक छलावा है
माथा श्यामला ही रह गया
पर पाउडर लगाते लगाते मुझे
पाउडर की खुशबू से पहला प्यार हो गया
कभी मुहाँसो को ढ़कने के लिए
तो कभी उसकी खुशबू का
मज़ा के लिए जी भर लगाया
धीरे धीरे मेरी कमजोरी बनता
चला गया गर्मी हो या जाड़ा
हर मौसम में प्रेमी जैसा प्यारा लगाने लगा!
कभी भाइयों के पाउडर छुपाने से
उनको खाने को तैयार हो जाती थी
माँ के मना करने पर मुँह फुला कर बैठ जाती थी!
सब कहते ज्यादा लगाने पर
पाउडर आँखों में चली जाएगी
इसी सलाह सुनकर आग बबुला हो जाती थी मैं
सब मेरे पाउडर के दुश्मन है
छुपा कर रख देती थी सब की नजरों से
फिर रात सज सवँर जाती थी
सब हँसते थे देखो!
इसे रात कौन देखने आने वाला है
दिन भर तो बंदरिया नज़र आती है
रात सुन्दरी श्री देवी पर सच कहूँ तो
मुझे पाउडर लगा नींद अच्छी आती थी
उसकी भिन्नी भिन्नी खुशबू मुझे बहुत भाती थी
आज भी जहाँ जाती पाउड
र मेरी साथ जाती खुशबू बनकर
मेरा जीवन महकाने इसकी खुशबू से
मेरा तन मन ताज़गी सी रहती है!
किसी भी काम को उमंग से करती थी
क्योंकि इसकी खुशबू जो इतनी मधुर है
मैं सुधबुध खो देती हूँ!
आज मेरा माथा भी वक्त के साथ
शरीर के बाकी रंगो सा हो गया!
पर पाउडर से चेहरे पर असमय झुड़ियाँ आ गई
मेरे चेहरे की कांति चली गई!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना

Wednesday 3 April 2019

"ग़ज़ल"

आपको हक़ जताना नहीं था
प्यार दिल में बढ़ाना नहीं था!
नफ़रतों की सियासत थी
करनी अब गले से लगाना नहीं था!
क्यूँ कुचलते रहे फूल सा दिल
आपको आज़माना नहीं था!
रब से जिसको दुआओं में माँगे
प्यार उसका भुलाना नहीं था!
नफरते बढ़ रही जिससे दिल में
ग़ज़ल मुझको वो गाना नहीं था!
लोग मिलते है खंजर छिपाए
पहले ऐसा ज़माना नहीं था!
गैर से आज नज़रें मिलाकर
अर्चना को रूलाना नहीं था!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मैलिक रचना
पूर्णियाँ,बिहार

ग़ज़ल

चेहरा लगता जाना पहचाना हुआ
फिर तु क्यों मुझसे ही अंजाना हुआ!
तुझसे भींगी भींगी सी नज़रे मिली
मेरा ये दिल तेरा दिवाना हुआ!
रात दिन जलती शमा के जैसी मैं
मेरा ये दिल अब तो मस्ताना हुआ!
अब तेरे ख्यालों में जीती रात दिन
और ये दिल तेरे परवाना हुआ
तेरे बिन इक पल जिया जाए न अब
मेरा ये दिल अब तो बेगाना हुआ!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना
पूर्णियाँ,बिहार