Saturday 30 December 2017

"नारी स्वंय मैं एक प्रश्न है"

नारी स्वंय मैं
एक प्रश्न हूँ!
और प्रश्न चिह्न लगा
मेरे वजूद पर!
मैं हूँ भी या नहीं
या केवल पुरूष का
एक अंशमात्र हूँ!
तभी तो मेरी स्वतंत्रता
मेरे अधिकार
मेरा शरीर
मेरा गर्भ
मेरा निर्णय
सब पुरूष के अधीन है
और मैं पराधीन हूँ!
सदियों से सदियों तक
छटपटाहट है पितृसत्तात्मकता से!
अभिव्यक्ति की
विवाह की
गर्भ धारण की
बेटी जनने की
निर्णय लेने की
पूर्ण आजादी से!
मैं कृतज्ञ हूँ
अपने अस्तित्व को बचाने के लिए
और अपने वजूद को
अपने ही अंदर तलासने के लिए
ये मेरे स्वालंबी बनने का सूचक है!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
३०/१२/१७

Wednesday 27 December 2017

"पलाश के फूल"

पेड़ की डाली से जब
सारे के सारे पत्ते झड़ नीचे आते
पेड़ की एक एक डाली के
ऊपर फूल लद जाते!
बसंत के मौसम में ही
पलाश फूल खिलते
जंगल में आग लगाते
और तुम मेरे मन में!
वैसे जब ही तुम आते
मुझ पर फागुन का फाग
पलाश के फूलों से बने
लाल रंग को लगाने
कभी खुशब़ू तो ना देते पर
मेरे मन में सदा तेरे यादों की
बगिया को महकाते
जब भी तुम चले जाते!
अद्धचँद्राकार पंखुडियाँ वैसे
चाँद सा तुम्हारा मुँख
छटा लालवर्ण के फूलों की
सूरज के किरणों से
कनक सी आभा आती!
गहरे लाल फूलों को टेसू कहते
वैसे तुम भी मेरे टेसू हो
जब गुस्से से तुम्हारा चेहरा
लाल लाल हो जाता!
पलाश को तलाश फूलों की रहती
और मुझे तुम्हारी!
वो भी ठूठा पेड़ सा मुक बना रहता
और मैं पत्थर सी बेज़ान मुरत!
फूलों से यौवना हरा रहता
गर्मी कहीं उड़न छू हो जाती
वैसे ही तुम्हारे होने से
मेरी प्राणवायु दीर्धायु हो जाती!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
२८/१२/१७

"अम्मी की कोठी"

गाँव में फैली एक पुरानी कहवत है
कोठी जैसा माँगा तो
कोठी हो जाओगें
लकड़ी जैसा मांगोगें
तो पतले हो जाओगे!
फिर क्या था अम्मी ने
खुदा से झटपट माँगी एक मन्नत
कोठी चढ़ाँऊगी अगर बच्चे हुए मोटे
खुब़ खिलाया
घी पिलाया
फिर भी हम मोटे ना हुए
सोच में पड़ गई माँ
डॉक्टर से कहकर
ताकतवाली दवाई लिखवाई
हमने दो दिन में ही चटचट कर देते
फिर बार बार पिलाती पिलाती
अम्मी थक गई
क्योंकि जितना हम खाते पीते
उससे ज्यादा की दौड़ लगाते
फिर एक दिन ऐसा आया
जब हम घर में ज्यादा देर पढ़ने को बैठे
कोठी जैसे हो गए हम!
अम्मा तो खुश हो गई
हमको लेकर गई गाँव
वही मिट्टी की कोठी बनाई
और चढ़ाई
पर हम दु:खी हो गए
हमें भी अनाजों की कोठी जैसी
चर्बी रखने की वस्तु बना दिया
रात दिन यही सोचते
कैसे होगें हम पतले
डाईटिंग साईटिंग सब की
पर टोटके सारे हुए बेअसर
अम्मी ने कोठी जो
मन्नत में माँगी थी!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
२७/१२/१७

Sunday 24 December 2017

"हम पूर्वज का इतिहास आगे बढ़ाने आए है"

हमारे पूर्वज
जो भूतपूर्व हो गए
और हम मानव
वर्तमान हो गए!
कभी उनका जमाना था
आज हमारा जमाना है
शायद कल किसी और का होगा
जो हमने देखा नहीं
पर समझते तो है
सदा किसी का भी
जमाना नहीं रहता
एक दिन हम भी नष्ट हो जाएगें
बीते सभ्यता बीते लोगों
बीती संस्कति
बीती पंरपराओं की तरह
केवल हमारे कंकालों का अवशेष बचेगें
फिर हम क्यों घमंड के मद में चूर
भूल जाते हम क्या थे
हमारे पूर्वज कौन थे
वो हमे किस उदेश्य से
धरती पर लाए थे
और हम यहाँ क्या कर रहे
लक्षयवहीन दिशावहीन से
मायावी दुनिया के छलावे में भटक रहे
हम मानव भूल गए कि
हम अपने पूर्वजों का इतिहास
आगे बढ़ाने आए है!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
२५/१२/१७

Tuesday 19 December 2017

"राधा केवल प्रयेसी या और कुछ"

राधा कृष्ण के बिन
हमेशा आधी ही रही
पूर्णता के लिए
वैवाहिक बंध चाहिए जो
उसे न मिल सका
पर क्यों?
क्या द्वापर युग में
राजा महराजा और
उनकी प्रजा एक पत्नीधारी थे
कोई उपपत्नियाँ नहीं रखते थे
क्या सवाल का कोई जबाब है?
प्रेयसी केवल प्रेम करने व
वासनापूर्ती के लिए होती है
विवाह के लिए नहीं
परन्तु क्यों ?
कृष्ण ने रासलिला तो वृदावन में
राधा और गोपी संग रचाओ
पर मथुरा की पटरानी क्यों न बनाओ!
विष्णुजी को नारद मुनि का श्राप था
रामराज्य में सीता का परित्याग
कृष्ण अवतार में राधा से वियोग!
अपराधी तो कृष्ण था
पर अपराधन क्यों राधा बनी
जो उसे वैराग जीवन मिला
विवाहिता का सुख ना मिला!
सदियों से पुरूषों द्वारा
छलने की एक प्रथा चली आई
आज भी चल रही
प्रेयसी प्रेम व वासनापूर्ति की
वस्तु में तबदिल हो गई
जो मान प्रेयसी राधा को
बिन पत्नी बने मिला
कृष्ण से पहले राधा का नाम जुड़ा
वही आज पुरूष के बाद नाम
जब किसी स्त्री का नाम जुड़ता तो पिता,परिवार,कुल और गोत्र की
नाम व इज्जत चली जाती
कभी गर्लफ्रेंड तो रखनी बन जाती
कहीं ऑनर किलिंग तो
कहीं हत्या कर दी जाती तो
कहीं आत्महत्या को विवश!
समाज ने तो कभी भी प्रेयसी को
धर्मपत्नी का दर्जा न दिया
लोकतांत्रिक देशों की न्यायपालिका ने
प्रेयसी को कानूऩी हक़ दिया
विवाहिता समझी जाएगी
बिन पारम्परिक रीति रिवाजों के भी
यदि पत्नी कर्म निभाती हो!
काश् राधा के युग में
न्याय की सर्वोच्च व
पारदर्शी व्यवस्था होती तो
रूकमनी की जगह राधा होती!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
१९/१२/१७

Monday 18 December 2017

"ओ दिसम्बर मेरे"


ओ दिसम्बर मेरे
तुम केवल कलेन्डर के
साल के अंतिम महीने नहीं
मेरे जीने की साँसे हो!
जब तुम आते वो भी आता
गुलमर्ग में ब़र्फबारी बनकर
मुझ पर प्यार की बारिस करता
उसके गोल गोल गोले बनाकार में
कभी यहाँ वहाँ तो
कभी खुद पर फेंकती हूँ
उसके ठंडपन से
मेरे रोम रोम खड़े हो जाते
ठंडी हवा जब फेफडों में जाती
मैं फिर जीवित हो जाती हूँ
वर्षो के इंतजार में
देह के जमें लहूों में
संचार स्पूर्ती होती!
बाहर का तापमान गिरकर
जब शून्य से माइन्स हो जाता
मेरे दिसम्बर तुम आ कर
मुझे शरीर के ताप को बढ़ा देते हो
सूरज तो बादलों में छुप जाता
पर चाँद को अंधेरा न रोक पता
वैसे दिसम्बर तुमको आने से!
मेरे दिसम्बर कड़ाके की ठुठुरन में
तुम्हारे साँसो की गर्मी से
मुझे पसीना आ जाता
मेरे तन और मन भींग जाता
सुन्दर सुन्दर फूल खिल जाते
और मेरे अंदर का यौवन भी!
तुमसे एक बार ही मिलन होता
तुम इसी बर्फीली आँधी में
कहीं उड़ गए थे
सोचती हूँ फिर वही आँधी आए
तो वापस लौट आओ!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
१८/१२/१७

Sunday 17 December 2017

" हे पार्थ! मेरा थोड़ा भार तुम ले लो"

हे पार्थ!
मेरा अनुनय स्वीकार करो
मेरा थोड़ा भार तुम ले लो!
जैसे मैंने तुम्हारा लिया है
महावारी की पीड़ा
नौ महीने की कोख
प्रसव की असहनीय पीड़ा
शिशु को स्तनपान करवाना
उनका लालन पालन
घर के कामकाज का भार
मेरे ही कंधों पर  है
अब तो मैं बाहरी काज भी करती
  सोचे अगर मैं ये ना लेती तो
तुम इन कार्यो में उलझे रहते
और तुम महापुरूष न बनते!
हे पार्थ!
तुमने सृष्टी के विकास दायित्व लिया है
प्रकृति व मेरी सुरक्षा का भी
पृसत्तात्मकता की वृक्ष वृद्धि का
विज्ञान व अर्थिक विकास का भी
तो परिवार नियोजन के लिए
नसबंदी का भार तुम लें लो!
नहीं तो और संतान होने की
संभावना बनी रहेगा और
तुम पर और भार बढ़ेगा
गर्भनिरोधक गोली बार बार खाने से
मुझ पर प्रभाव पड़ेगा
बार बार गर्भपात कराने से
मेरा स्वास्थ जीर्ण होगा और
मैं मौत के मुँह में जाकर
वापस न आ पाउँगी
तुम तो दूसरी,तीसरी जाने कितनी ही
प्रेयसी व पत्नी मिल जाएगी
पर मेरे लालाओं को माँ का
प्यार दुलार न मिलेगा!
पुरूष नसबंदी के बहुत से फायदे है
एक तो महिलाओं को शाररिक व
मांनसिक अवसाद कम होगा
दूजा पुरूष के स्त्रीगामी होने का
खतरा कम होगें
घरों में गृहकलह कम होगें
तलाक के केस भी कम दर्ज होगें
परिवार का विघटन रूकेगा
साथ जनसंख्या नियंत्रण पर
लगाम कसेगी!
हे पार्थ !
अब तो ले लो मेरा भार
नहीं तो मेरा जीवन दु:खमय व
अवसाद के भव सागर सदा ही
तैरता और उतरा रहेगा!
कुमारी अर्चना
पुर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
१७/१२/१७

Saturday 16 December 2017

"सिंदूर का रंग लाल क्यों"

आखिर सिंदूर का रंग लाल क्यों है
रक्त का रंग भी लाल है
लाल शक्ति का भी प्रतिक है
मन को जल्दी लुभाती है
दूर से ही रूको जाओ
अन्य पुरूषों पर किसी
अपनी और पराई वस्तु की
मरजाद को बताती और
उस स्त्री पर लक्ष्मण रेखा या
सदियों पहले लगी
हम पर दासता का मुहर है
और कुछ...!
प्रकृतिक सिंदूर कमीला की फलियों से बनता और अप्रकृतिक मरक्यूरिक सल्फाइड कहलाता!
हिंदू स्त्री का विवाह एक पुरूष के साथ
सिंदूर से भी होता
ये नाक से माँग तक विवाह पूर्व
विवाह पर माथे से मांग तक
पतिदेव द्वारा भरी जाती
सदा सौभाग उँचा बना रहे
दोनों घरों की परंपरा का मान बना रहे
बाद सुहागिनें भी पहनाती सिंदूर
सदा सुहागन रहने का देती आशिष !
सिंदूर स्त्री की काम इच्छा को भी
उतेजित को भी करता है
क्योंकि विवाह के बाद
परिवार व्यवस्था शुभआरंभ होता
काम इच्छापूर्ती के साथ संतान पाने के
परम उदेश्य की प्राप्ती होती!
छठपर्व पर नाक के ऊपर से माँग तक
स्त्रियाँ एक दुसरे को सिंदूर लगाती
जिस हिंदू धर्म में सिंदूर इतना पवित्र है सिंदूरदानी को उम्रभर सुहागन संभालती
देवी और देवता तक को चढ़ाया जाता
उसी सिंदूर को एक पुरष
कई स्त्रियों की माँग में देता
एक धर्मपत्नी के रहते हुए
कई उप पत्नीयाँ बनाता
ये अपना वो कैसा पति धर्म निभाता
बिन सिंदूर लगाए पुरूष कुवाँरा ही
जिंदगी भर ग़र खुदको विवाहित न कहता! सिंदूर पूरी माँग में लगा कर भी
क्यों बलिकायें व नवयुवतियाँ
कम उम्र में बन जाती विधवाएं
तलाक भी सबसे ज्यादा क्यों
व्यवस्था शादियों में ही होते
क्यों पति के द्वारा धर्मपत्नी को
उपेक्षित छोड़ दिया जाता
बच्चों के रखरखाव खर्च देने में
सदा आना कानी करता
मजबूरन कानूऩ का दरवाजा खटख़टाती तो दुनिया का सबसे लालची इन्सान बन जाती
जो वापस अपने मायके जाती
वो ताना सुनते पक जाती
ग़र बाहर निकल जाती तो
दर बदर की टोकर खाती
सुहागन होकर भी विधवा का जीवन के लिएअभिशप्त होती!
सिंदूर केवल उत्तर भारत में हिंदू स्त्रियों
द्वारा पहना जाता दक्षिण भारत व
पश्चिमी देशों में ये प्रथा प्रचलित नहीं
न ही वो सिंदूर लगाती
न करवाँ व्रत में भूखी प्यासी रहती
फिर भी पतियों व पत्नियों दोनों की उम्र दीर्धयायु होती है!
फिर क्या सिंदूर केवल आर्य प्रदेश की
सीमा में स्त्रियों की स्वच्छंदता की
एक सीमा तय करता है या
पितसत्तात्मक सत्ता का
बचा खुचा अवशेष चिह्न
जो आज के आधुनिक समाज में वैदिक परंपराओं व रीति रिवाजों की
असीम शक्ति को बतता!
पर क्या इसे लगा कर भी
सभी सुहागनें पत्नी धर्म को निभाती है?
क्या कसौटी सारे पैमाने सिर्फ स्त्रियों पर ही लागू होते रहेगें
ये पुरूषों पर आज तक क्यों न लगे!
या तो दोनों पर ही लगाओ
या स्त्रियों को भी इन प्रतिकों की
गुलामी से सदा सदा के लिए
मुक्ती दे दो!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
१७/१२/१७

Friday 15 December 2017

"चाँद बड़ा तो है"

चाँद बड़ा तो है
चाँद से बड़ा मेरा दिल
जो तुमको अपने अंदर समाँये हुए हैं!
क्योंकि चाँद चाँदनी को
अपने अंदर समाता नहीं है
उसकी रोशनी को बाहर
बिखरे देता है!
इसलिए चाँद बड़ा तो
पर मुझसे छोटा है!
कुमारी अर्चना
मौलिक रचना
पूर्णियाँ,बिहार
१५/१२/१७

"मैं इतिहास बनना चाहती हूँ"

मैं इतिहास बनना चाहती हूँ
इसलिए मुझे इतिहास बनना होगा
मेरी कलम रूके नहीं बस चलती रहे
जिन्दगी की सासों के अन्तिम क्षणों तक!
तभी इतिहास पन्नों पर
मैं कवयित्री कहलाउँगी
सब कुछ भूल
सब को भूल
"मैं"को साधना होगा!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
१५/१२/१७

Thursday 14 December 2017

"फेसबुक"

चेहरों की वो सुन्दर किताब
जहाँ पन्नों की संख्या तो अनग्नीत होती
अपनों की गिनती अँगुलियों पर होती
सबके चेहरे ऊपर से सुन्दर लगते
अंदर का बातों से पता चलता है!
मानवों के अप्रत्यक्ष संबंध
जो पल में बनते में पल में टूटते
कभी अन्फ्रेंड होने पर तो
कभी ब्लॉक होने पर!
यहाँ भावनाओं की शून्यता तो
कभी अतिव्यापी दिखती
कोई इमोशनल हो जाता तो
कोई इमोशनलफुल बन रह जाता!
फेसबुक पर अपना खाता बनाकर
जब चाहे लॉगआउट से बंद करो
बाद गुप्त पासवर्ड लगा
बेफिक्र हो जाते पर
हैंकर फिर भी हैंक कर लेते है!
हमारा एक मन सदा वही रहता
उसका संदेश आया होगा
शायद मिलने बुलाया होगा
या मोबाइल नम्बर दिया होगा
या इशारे से पता ही अपना बता दें
जाने कितनी ही अल्टी पुल्टी बातें
यकायक मस्तिष्क में दौड़ जाती
जैसे बिन गाड़ी के पटरी पर
अभी उसका सिंगल भी नहीं मिला की
प्यार की गाड़ी दौड़ पड़ी!
और एक वो है जो टाइपपास के लिए
थोड़ा बतिया लिया
आज मुझे स्माइल देती
कल किसी को अपना मोबाइल नम्बर
तो किसी और को कोई फोटो सोटो
किसी से मिलने का समय देती तो
किसी के साथ डेट पर जाती
हे भगवान डार्लिग जवानी निकले
कोई बुढ़िया अम्मा नहीं!
सामने बैठे उस हेडसम का क्या
दिखने में अमीर सा लगता है
एटीएम में लाखों कहता है
पर जेब में फुटी कौड़ी नहीं
ढ़ेर सारी सोपिंग कराएगा कि नहीं
केवल बातों के ही गोलगप्पे खिलाएगा!
सोशल साइट्स पर एक ओर
प्यार के पक्षियों की जुगलबंदी
देखने को मिलता दुसरी ओर
पुराने मित्रों से मेल मिलाप होता
अजनबियों की रूब़रू होने का
बढ़िया सुअवसर भी!
कुछ बातें हँसी ठिठोली की होती
कुछ मोहब्ब़त व नफ़रत की होती
कुछ ज्ञान व मनोरंजन की होती
कुछ सिखने और सिखाने की!
फेसबुक बनाने वाले मार्क तेरा
तहेदिल दिल से शुक्रिया हैं
यूर्जर ने तुम्हें मलामाल कर दिया
फेसबुक के प्रतिदिन यूर्जर बढ़ रहे
वो दिन ज्यादा दूर नहीं है
जब लोगों की शाम व सुबह
फेसबुकी दुनिया से होगी!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
१४/१२/१७

" लिंग"

हे तो लिंग हर पुरूष को
पर शिव का लिंग शिवलिंग कहलाता
क्योंकि वो है परम पूजनिय महादेव
त्रिलोक के स्वामीजी!
शवपुराण कहता ज्योतिपिण्ड
जब पृथ्वी पर गिरी तब
शिवलिंह की उत्पत्ति हुई!
वैशिक शास्त्र कहता ब्रहांड में
उपस्थित समस्त ठोस व उर्जा शिवलिंग है हमारा शरीर पदार्थ और
आत्माउर्जा से निर्मित है!
विज्ञान कहता पदार्थ को उर्जा में
बदलने पर वो दो नहीं है एक ही है
पर दो होकर ही सृष्टि की उत्पत्ति करते है!
शिवलिंग शिव व आदि शक्ति का
आदि अनादी एक रूप है
परम पुरूष का प्रतिक है
पुरूष और प्रकृति के समानता का
प्रतिक चिन्ह है!
परन्तु कहीं ना कहीं शिवलिंग
पुरूषवादी सत्ता का प्रतिक
रूपी चिन्ह भी है
ये लिंग जो उसकी श्रेष्ठा साबित करता
सृष्टि का एक मात्र निर्धारक है वो!
एक सामान्य पुरूष को
किसी स्त्री को लिंग दिखाने पर
आईपीसी की धारा पाँचसौ नौ लगता व
एक वर्ष की सजा होती
फिर ऐसे सार्वजिनक रूप से
लिंग की पूजा क्यों होती
ये कैसा स्त्रियों का सम्मान है
जहाँ कई मंदिरों के गर्भ गृह में
आज भी स्त्रियों का प्रवेश निषेध है
महावारी में स्त्री अपवित्र है
जो सृष्टि के जननी का आधार है
फिर लिंग की क्यों पूजा की जाती
जो पुरूष की मानंसिकता को बढ़वा देती
वैसा भारत में योनि की पूजा होती
पर कितने मंदिरों में ये होती!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
१४/१२/१७

Sunday 10 December 2017

"मैं हूँ खुशरंग हिना"

हिना ही तो हूँ मैं
हिना हाथों पे
अपना रंग छोड़ती है
मैं लोगों के चेहरे पे मुस्कान!
वो भी खुद सिलबट्टे पे
घीस घीस कर पिस जाती
और मैं भी तुम्हारे इंतजार में
रोज रोज मिटकर
प्यार तो हम दोनों ही करते
बस फ़र्क इतना है
कोई घीस कर तो
रोज जी कर मरता!
कैसी विरह की आग है
जिसमें कोई एक बार भष्म हो जाता
कोई पतंगे सा तड़फ तड़फ के
क्यों मोहब्ब़त मैं इतना ग़म मिलता है
कभी प्रेमी प्रेमिका से मिलता है
तो कभी प्रेमी प्रेमिका
किसी और के हो जाते
जैसे हिना किसी और के
हाथों में सजती है
क्या मैं भी किसी और की
दुल्हन बन सजूँगी मिटने के लिए
या कई हाथों का खिलौना बन जाऊँगी!
फिर उन वफाओं का क्या
उस मोहब्ब़त का क्या
उस इब्ब़ादत का क्या
उस एतब़ार का क्या
और उस इंतज़ार का क्या
जो मैंने किया तुम्हारे लिए
जवानी से लेकर ढलती जवानी तक
दमकती से लेकर झुड़ियाँ पड़ती चमड़ी तक पतली से बेडब होती काया तक
गुजरे जमाने से लेकर आज तक
क्या यूँ बेकार हो जाएगें
जब मुझे तुम्हारी नहीं
किसी और का होना था!
कुमारीअर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
१०/१२/१७

Monday 4 December 2017

"अग्नीपरीक्षा"

सीता फिर दौपद्री को
क्यों देने पड़ी अग्नीपरीक्षा
आज भी एक आम स्त्री दे रही!
एक पति के दूर रही
एक पास रही फिर भी
एक सदा साथ रहती है!
दूर तो राम भी अपनी भार्या से रहे
फिर क्यों अपने चरित्र का
कोई प्रमाण नहीं दिया
मर्यादा पुरूषोत्तम राम जो ठहरे
उनके अंदर नैतिक कूट कूट भरी
और सीता के अंदर....!
एक अयोध्या वापस पर
अपनी पवित्रा की परीक्षा दी
एक इन्द्रप्रस्थ की भरी सभा में
सभी सभासदों व गुणीजनों के बीच!
चीर होती स्त्री के लाज बचा ना सके
रो रो कर भगवान कृष्ण को पुकार पड़ी
सीता के लिए जटायू दौड़े  दौड़े आए
और एक आम स्त्री भी रोज पुकार रही
बालिका हो
या युवति हो
या वायोवृद्ध हो
सब एक समाना
अपनी मान सम्मान को
भेडियों से बचाने के लिए देती है
कुछ मिनटों पर अग्नीपरीक्षा!
कभी पिता
तो कभी भाई
कभी रिश्तेदारों
तो कभी पड़ोसियों से
कभी अजनबियों से लूटाती
तो कभी खुद की इज्जत
बचाते बचाते प्राण गवाँ बेठती
तो कभी मार दी जाती या
इन्साफ के इंतजार में
बुढ़ी हो जाती!
क्यों वो सम्मान नहीं दौपदी को
जो सीता को मिला
गलती क्या थी उसकी
जो जीती वस्तु समझ
उसे पाँच पांडवो में बाँटा गया
क्यों पांचाली कहकर आज भी
स्वच्छंद स्त्रियों की खिल्ली उड़ाई जाती
कभी कुलच्छनी
तो कभी वैश्या कहकर
पाँच तो कभी सात पुरूषों के द्वारा
एक ही स्त्री से बारी बारी
संबंध बनाया जाता
बलात्कार हुआ एक क्षण को
भूल भी जाए पर
हैवानों के चेहरे को कैसे भूले
जो रात के अंधेरे में दबे पाँव से
आकर बार बार बलात्कार करते है
उसको सपनों का
उसके वर्तमान
और आने वाले भविष्य का
उसके तन का
और मन का!
कलयुग में कोई कृष्ण बनकर
लाज बचाने को नहीं आएगा
खुद ही उसको अपनी
लाज बचाने के लिए
कृष्ण बनना होगा!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
४/१२/१७

Sunday 3 December 2017

माँ ने पहले बेटी क्यों माँगी

बारह साल हुई की
मेरी पहली महावारी हुई
भय से भयभीत
मेरा बच्पन हुआ
मैं जवान हो गई
अब क्या होगा
मेरी शादी हो जाएगी!
मैंने एक बार माँ को देखा था
कपड़ा बार बार लेते हुए
पूछा था क्यों फाड़ रही हो
सुन्दर साड़ी को
माँ ने कहा जरूरी है
तब नैपकिन बाजार में न आते थे
रूई और पुराना कपड़ा ही
सहारा था उन दिनों का
मुझे वो सब याद आया
धीरे से जा माँ की कान में कहा
वही हुआ है जो तुमको हुआ था
माँ ने कपड़ा देते कहा
साफ कपड़ा रखना है
तुम भी अगले महीने के लिए
पहले से ही कपड़े धो कर
रखने की आदत डालो
ये भरी काम लगा मुझे
क्या हर महीने यही सब करना होगा
मैं चुपचाप देखती रही
आवाजें तो कान में जा रही थी
पर मुझ तक न पहुँच पा रही थी
चेहरे का हँसी कहीं गुल थी
ये तो बहुत बुरा हुआ
इतनी जल्दी कैसे हो गया
मैं बड़ी हो गई हूँ
अभी तो छोटी थी
ये रक्त आते ही
इससे अच्छा होता न आता
मैं बच्ची ही रहती!
कुछ महिलाएं घर आने वाली थी
मेरे फ्रोक पर दाग लग चुका था
माँ ने कहा कपड़े बदल लो
नहीं तो सबको पता चल जाएगा
इस स्थति में किसी को कुछ मत बताना
सिर्फ मुझ से
मैंने मुढ़ी हिला दिया!
एक बार मैंने सिमेंन्ट की बनी खिड़की के
छिद्र में कपड़ा छुपा दिया
कहाँ फेकूँ लेट्ररिन में फेंका तो
जाम हो जाएगा ऐसा माँ ने मना कहा था
मिट्टी में दबा दो या नाले में फेंक दो
मरा हुआ खूऩ है
इसके निकलने से अच्छा रहता है
शरीर की गर्मी बाहर आ जाती
मैं सोचती थी ऐसा कैसे
अभी तो जाड़ा का मौसम है
ठंड लग रही है
मुझे फिर कौन सी
गर्मी बाहर आएगी
बाद समझी थी मैं
माँ कौन गर्मी की बात करती है!
माँ ने देख लिया तो
मुझे खुब दांटा था
बोली ये गंदी चीज है
इसे जहाँ तहाँ मत फेकों
पापा तक को कह दिया
उन्होंने कहा बच्ची है
पर माँ ने कहाँ की बच्ची
गाँव में इतनी में शादी करनी पड़ती
मेरे चचेरी बहन को पंद्रहें वर्ष में
माहवारी हई बस दादी ने कोहराम मचा
उसकी शादी करवा दी!
पेड़ पर मत चढ़ना व छूना
खट्टा मत खाना नहीं तो ज्यादा होगा
आचार मुझे  बहुत पसंद था
लड़कों के साथ बात नहीं
न हँसी मज़ाक करना
नहीं तो बच्चा हो जाएगा!
ऐसे उन्होंने मुझे
डराने के लिए किया था
कहीं मैं कोई गलत कदम न उठा लूँ
मेरी पहली महावारी से दर्द की
मध्यम पीड़ा वरदान में मिली
कुछ लड़कियों को नहीं भी मिलती है
रक्त भी सही आता है
पता भी नहीं चलता
कुछ हुआ भी है पर
चुभता था अंदर कुछ
पेट भी फूल जाता
बुखार भी पेट भी गड़बड़ हो जाता
उल्ला लेटी रहती थी तकिये बल
बिस्तर पर माँ को बहुत चिंता हुई
जैसी की पूर्वधारणा फैली है
मासिक धर्म अनयमित होने व
दर्द होने से बच्चा होने में समस्या होगी
माँ को होता था
मैं उनके विवाह के
दसवें साल पैदा हुई थी
उन्होंने मुझे होम्योपैथी से लेकर
ऐलोपैथी तक सारे डाक्टर को दिखलाया क्लनिक में जब महिलाओं को पता चला
इतनी छोटी लड़की है
पिरियड आ गया
क्या समस्याँ है
ओ दर्द होता है
धोलया करना होगा
डॉक्टरनी हाथ डाल देखेगी
माँ ने कहा अभी शादीशुदा नहीं है
बहुत सारी दवाईयाँ लिखी डॉक्टरनी ने
माँ ने जबर्दस्ती खिलाई
फिर भी मैंने कुछ फेंकी दी
कभी दर्द कमता तो कभी बढ़ता
कभी रक्त की मात्रा ज्यादा
तो कभी कम आती
कभी कभी महीना में दो बार आ जाता
इन उल्टी पुल्टी दवाइयों को खाकर
मेरे मन उब गया
कुछ तो होता नहीं
भगवान से प्रार्थना करती
जल्दी से दर्द छू हो जाए
या बंद ही हो जाए पर नहीं हुआ
बाद एक डॉक्टर ने कहा दर्द तो होगा
यह एक स्वस्थ लक्षण है
कोई बिमारी नहीं
बस खान पान पर ध्यान रखो
इन दिनों आराम करो
नैपकिन प्रयोग करो!
पर बदब़ू बहुत आती
इसकी गंध मुझे न भाँती थी
उल्टी सी जब आती
परफ्यूम अक्सर यहाँ वहाँ छिटा करती
खुब़ नहाती थी
फिर भी गंध अंदर से आती थी!
बाद मैंने पढ़ा किसी लड़के से बात करने से बच्चा नहीं होता
बच्चा तो संबंध बनाने से होता है
बाद मैंने पेड़ पौधों को छूकर
सत्य का परीक्षण किया
क्या मेरे छूने से सूखते है
पर वो न सूखे
वैसे माँ ने पूजा पाठ करने से
मना ना किया था क्योंकि
वो भी करती थी
पर बाद मना करने लगी
तुम भी मत करो
पता नहीं था मुझे
पर मैं नहीं मानने को तैयार हुई
जब पहले करती थी
तो अब क्यों नहीं कर सकती
मैंने कहा जब देवी को होता तो
पवित्र है फिर मैं कैसे अपवित्र
ये सब पण्डितों का ड्रामा है
जो भी ग्रंथ लिखे है
वो हम स्त्रियों ने कहाँ लिखे हैं
सबका सब झूठ है
मन से पूजा होती है!
दर्द तो कम न हुआ
उम्र के साथ कमर व हाथ पाँव तक में
पीड़ा बढ़ती ही गई
कुछ वर्ष के बाद समाप्त भी हो जाएगी
पर एक सवाल जो पहले भी आया था
ये पुरूषों को क्यों नहीं होता
वो कितने आज़ाद है
यहाँ वहाँ कही भी जा सकते
ना नैपकिन साथ रखने की जरूरत
न तारिख याद रखने का झमेला
न कोई भी दर्द न बच्चा पैदा करना
न उनकी सेवा करने की
कितना अच्छे पुरूष होते है
मैं भी पुरूष होती तो
कितना अच्छा होता
न कभी सुसुराल जाती
मम्मी पापा के पास ही सदा रहती
माँ ने पहले बेटी क्यों माँगी
बेटा क्यों नहीं!
माँ ने बताया था तुमको
जान कर माँगा था
मेरा घर के काम में हाथ बटाँओगी
नहीं तो तुम बेटा ही होती
मैं मन मसोर कर रह जाती
गुस्सा भी करती
पर कभी खुद को बेटे से
कम न समझती थी
हर काम में भाईयों से बराबरी की
किसी वस्तु से लेकर पढ़ा लिखाई तक
प्रेम विवाह करँगी
जल्दी शादी न करने की जिद्द भी
दंजा किया करती थी
घर के कामों में भाईयों से
मैं अगर बेटा होती तो
तुम मुझे भी आराम से रखती
पर माँ कहती तुम बेटा तो नहीं
बेटी हो दूसरे घर जाना है
काम धंधा सिख लो
नहीं तो सब मुझे गाली देगी
पर मैं हमेशा बराबरी के
अघिकार की माँग करती
आज भी करती हूँ
पर जान चुकी हूँ
मैं बेटी हूँ और
बेटा बेटी में एक ही अंतर होता
वो है लिंग का
जो मेरे पास नहीं!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
४/१२/१७