Sunday 4 August 2019

"चालिस की उम्र"

चालीस की उम्र जवानी के ढ़लने की उम्र
पुरूष इस उम्र में और जवाँ होता
और औरत बुढ़ापे की दहलीज पर!
यौवन की चरम अवस्था के बाद
शरीर की माया का क्षणभंगुर हो जाना
स्त्री तो जीवित रहती है
पर पुरूष की रूचि अरूचि में बदल जाती
एक देह ही तो है जिससे वो
पुरूष से जीवन साथ चाहती है
दूसरी उसकी सेवा है जिससे वो
उसके पूरे परिवार कर पाती है
उनसे सम्मान और प्यार!
स्तनों का कसावट के जाने का संकेत
उसके रूप रंग का फिक्का पड़ना
मनोपाॅज की समय नजदीक आना
पुरूष के लिए बच्चा जनने की
मशीन का बेकार हो जाना है!
उफ् मैं अब बेकार हो गई
उस कुड़े कचरे की तरह
मौले कुचले फटे कपड़े की तरह
जिससे अब पहना न जाएगा
ना सजावट के लिए रखा जाएगा
अब घर के किसी कोने में
अपनी जिंदगी काटनी होगी
ना पति ना ही बच्चे बात सुननेंगे
नोट जो नहीं कमाती हूँ
मुझमे आकर्षण कहा से होगा
जो कमाती है वो बुढ़ापे तक
जवान रहती है पति,प्रेमी के लिए
बच्चों के लिए एटीएम बाद बन जाती
उफ् ये जवानी एक बार ही क्यों आती है
बार बार क्यों नहीं!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना पूर्णियाँ,बिहार

"मैं वो न बन सकी"

सीता हो राम की संगिनी
वनवास में भी साथ रहे
दुःख में दुःख अहसास न दे
मैं वो सीता न बन सकी!
श्रापित होकर कई जन्मों कर सकी
न राम की भक्ति अहिल्या सी बनकर
मैंने कि न राम के चरणों की पूजा!
मैं मंदोदरी न बन सकी
जो पति के स्त्रीगामी होने पर भी
पति को ही परमेश्वर माने
मैं साधारण सी स्त्री"अर्चना"रही
जिसको कभी सौतन न भाए!
मैं उर्मिला सी सुहागन होकर भी
विधवा बनकर रह सकी
न जीवनपर्यत पति वापसी में
अश्रूओं को ही पी सकी!
द्रौपदी सी अपमानित होकर
ख़ू का का घूँट पीकर भी
सारा जीवन पंचाली बनकर
मैं कुँवारी न रह सकी!
गोपाल की राधा बनकर
बच्चपन संग न खेल सकी
प्रीत की आग में जल सकी
गोपियों सी स्वच्छंद प्रेम न कर सकी!
मीरा सी कृष्ण बाबरी होकर
बिष के प्याला को भी
मैं पीकर भी न जी सकी
मैं मीरा सी दिवानी न हो सकी!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना पूर्णियाँ,बिहार

Saturday 3 August 2019

"एक बार फिर से बरसात होने दो"

एक बार फिर बरसात होने दो
तुम्हार अहसास को पास होने दो
पास इतना न आओ दूरी मिट जाए
जरा ठहरो थोड़ी शाम होने दो!
बेकरारी तुम्हें है इतना क्यों
चुबन के बिना भी प्यार होने दो
और हमारे फासले को कम होने दो
अभी प्यार की गाड़ी चली है
इससे और जरा तेज होने दो!
जस्मो को मिलाने की जल्दी क्या है
इसे और भी कुराने पाक होने दो
मैं रूहों का मिलन चाहती हूँ
दोनों के बीच कुछ पर्दा रहने दो
अभी मिलन की रात आनी बाकी है
उस रात तक का सब्र रहने दो!
इश्क में जाति,मजहब को न लाओ
इन्सान में अभी भी इन्सान रहने दो
लहू रहता है मेरे जिस्म में और तुम्हारे भी
दिल में अभी भी कुछ जज्बात रहने दो
एक बार फिर से बरसात होने दो!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना पूर्णियाँ,बिहार

"ये कैसा रोग मुझे लगा गए"

ये कैसा रोग मुझे लगा गए!
प्रेम देकर भी प्यासा छोड़ गए
ना दिन को चैन ना रात को आराम!
डाॅक्टर भी नब्ज़ पकड़कर
मर्ज की दवा नहीं लिख सकता
दुआ भी ब़ेअसर हो जाती
ये कैसा रोग मुझे लगा गए!
परेशानियों का सबब़ दे गए
सुक़ून की दुनिया उजाड़ गए
आँखो से नींद ले उड़ गए
चेहरे पे उदासी दे गए ओठों की हँसी ले गए
ये कैसा रोग मुझे लगा गए!
प्रेमरोग कहते है इसे खूदनसीब़ो को मिलता है
पत्थर दिल क्या जाने प्यार
किस चिड़िया का नाम है
जिसे होता है वही जानता है
ये कैसा रोग मुझे लगा गए!
कुमारी अर्चना'बिट्टू'
मौलिक रचना पूर्णियाँ,बिहार

Friday 2 August 2019

"कब तक मेरा बलात्कार करोंगे"

कब तक मेरा बलात्कार करोंगे
जब तक थक न जाए
तुम्हारे शिशन की अंदर की भूख
मेरी योनी पर प्रहार करोंगे!
स्त्री हूँ मैं सब कुछ सहने का
असीम साहस भरा मेरे अंदर
प्रसव की कठिन पीड़ा को सहकर भी
नव जीवन में जीवन भरा मैंने!
ऐसे ही किसी स्त्री की योनी से
तुम्हारा भी कभी जन्म हुआ था
ये क्यों तुम भूल चुका है?
तेरी माँ तेरी बहन बस तेरी है
बाकियों की इज्जत करना भूल चुका है
ओ पापी तू इन्सानियत भूल चुका है
खाना भी उतना खाना चाहिए
जितनी की अंदर भूख हो
पर तू तो राक्षस बन चुका है
मर चुकी है तेरी अंत: संवेदनाएं
तेरा जीवित रहना घरती पर बोझ है
कराह रही है अब तो मेरी धरती माँ!
आखिर कबतक द्वितीय लिंग बने रहेंगे
हम बालात्कार का बदला उसकी भी
माँ बहन से क्यों न लेगा मेरा परिवार
नहीं इस बदले में दूसरी स्त्री पीड़ित होगी
ना ना समाज में ऐसा ठीक न होगा
अराजकता चारों ओर ही मचेगी!
न्यायालय ही एक ही रास्ता बचा है
वहाँ भी अब मेरा लड़ना हुआ है मुश्किल
जाऊँ तो जाऊँ मैं मदद के लिए कहाँ
पुलिस और प्रशासन बिक जाते
काली कोट पहनेवाले वाले
मेरे ही चरित्र पर दाग लगाते है
परिवार वाले समाज के डर से
घरों में मुँह छुपाकर छिप जाते है
छेड़छाड़ की बात तो मुँह में ही रह जाती है
बालात्कार होने पर नेता वोट बटोरते है
मीडिया भी बार मुझे नंगा करती है
फिर भी मैं हिम्मत ना हारूँगी!
जरूरी है अब बालिगों से बालात्कार पर
फांसी की ही एकमात्र सजा हो!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना पूर्णियाँ,बिहार