प्यार का दिन है आज
और तुम नहीं हो पास
फिर भी भिन्नी भिन्नी
वही खुशबू आसपास है!
बिखरती ओस की तरह
खिलती फूल की तरह
मेरे तन मन पर जब भी
तुम पास आते जाते थे
आत्मिय अनुभूति होती थी
कोई तो इस दुनिया में अपना है
जिसके तार दिल से जुड़े हुए!
अब तो फोन होकर भी
बड़ी फासले की खाई है
जो मिटने का नाम नहीं लेती
शायद अंतिम साँसो तक बनी रहेगा
तुम किसी और के हो चुके हो
पर पुरूष से मेरा प्यार
समाज की नज़रों में अनैतिक है!
पर मैं दूसरी औरत की तरह
तुमे शरीर से पाना नहीं चाहती
मन से चाहा है और
मन ही पाना चाहती हूँ
इहलोक में नहीं तो परलोक में
मेरा प्यार तुमसे
किसी एक दिन से नहीं है
जीवनभर और जीवनउपरान्त भी
सदा ही बना रहेगा जैसे
भगवान पर विश्वास!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना
Monday 24 February 2020
"प्यार का दिन है आज"
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment