वो मांग में सिंदूर
मांथे पर बिंदिया
गले में मंगलसूत्र
हाथों में चुड़ियां
पावों में नुपूर,बिछियां
और रंग बिरंगी
साड़ियाँ भी पहनती
पर विवाहिता नहीं
परित्यक्त स्त्री कहलाती।
शादी होने से पहले और
शादी के बाद करवाँ चौथ
व्रत सारे नियम से किया था
पर भूल कहाँ हुई थी?
पर पुरूष की ओर भी नहीं देखा
घर संभालने के साथ
बाहर कमाती भी थी
बांझिन भी न थी
तीन तीन बेटे थे
फिर भी पति ने
दूसरी शादी क्यों कर ली।
परित्यक्ता स्त्रियों की स्थिति
तलाकशुदा से ज्यादा बदतर है
क्योंकि वो अतित के साथ
अपना जीवन जीती है
समाजिक सुरक्षा के लिए
सुहागन का कवच ढ़ोती है
तलाकशुदा वर्तमान के साथ
आर्थिक सहायता भी कुछ पाती है।
परित्यक्त स्त्री को ही
सब दोषी मानते हैं
कुछ कमी होगी तभी तो
पति ने छोड़ दिया
रूपया कमाती है
पति को माने नहीं लगाती
जो केवल गृहिणी है
वो आर्दश पत्नी है।
सीता भी परित्यक्ता स्त्री थी
जब गर्भवती अवस्था में थी
आज भी ऐसी कई स्त्रियाँ है
जिनकी कोई गलती नहीं है
फिर भी परित्यक्त का दर्द
चुपचाप सहती है और
सिंगल मदर्स बन अपने
बच्चों की परवरिश करती है।
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना
कटिहार,बिहार
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