Thursday 20 June 2019

"लड़किया कैसी होती"

लड़कियाँ कैसी होती है
लड़कियाँ तो बस लड़कियाँ
लड़को से कहाँ कम होती है
वो सीधी सी सुशील सी
तेज तरार कटार सी!
मिट्टी से साँचे में ढलने वाली
मोम सी जल्द पिघलने वाली
कली सी अधखिल्ली
गुलनार सी दिखनेवाली
कचनार सी खिलनेवाली!
पत्तों सी कोमल होती
डाली सी नाजुक होती
नदी से निर्मल होती
रूई सी मुलायम होती
हवा सी दिवानी होती
पक्षी से मतवाली होती!
लड़कियाँ हिरणी से फुर्तिली
शेरनी से बहादूर होती है
सियार सी कायर नहीं
लोमड़ी सी चलाक होती है
परिस्थियों में वो खुदको
परिस्थियाँ उसमें ढलती है!
कुमारी अर्चना'बिट्टू'
मौलिक रचना
पूर्णियाँ,बिहार

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