बेला आई साँझ सवेरे
दिल सजना सजना पुकारे
उपवन में जब खिले बेला
गमगम कर मैं मकहूँ!
बेला भी बहुत हो आई
सजना काहे न जागे
रोज सुबह देती हूँ
तुम्हें दो चार बेला फूल
तन मन तरोताजा रहता
बारम्बार तुम यही कहते
तुम ही हो मेरी बेला हो
मेरा नाम "अर्चना" बिसर जाते
मैं रूठ जाती बेला न बुलाओ
कहीं फूल बेला ये बात सुनकर
फूल देना बंद कर दे तो
मेरी शादी का मंडप कैसे सजेगा
फिर मधुमास मिलन
बिन खुशबूओं के फीका
पर तुम ना माने सजना!
सरस्वती पूजा हो
या बेणी श्रृंगार बेला
सफेद रंग का फूल
बसंत से वर्षा ऋतु तक
भीनी गर्मी के मौसम में
तरावट का अनुभव कराते
हम इसमें डूब जाते!
बेला को मोगरा,यास्मीन भी तो कहते है
यह पवित्रता शक्ति,सादगी विन्रमता
और शुद्धता का प्रतीक है
जैसे कि हमारा प्यार!
बिन बेला फूलों के जीवन से
उमंग ही जैसे चला गया
तुम परदेश गए फिर ना लौटे
बेला के फूलों ने तुमको
मेरी कभी याद ना दिलाई
क्योंकि बेला मुझसे नाराज होकर
मेरे बाग से सुख गई
फिर मैंने बेला फूल न लगया
बेला लेने वाली कोई नहीं आया!
कुमारी अर्चना "बिट्टू"
मौलिक रचना
पूर्णियाँ,बिहार
Thursday, 20 June 2019
"मेरा बेला के फूल"
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