Friday 2 August 2019

"कब तक मेरा बलात्कार करोंगे"

कब तक मेरा बलात्कार करोंगे
जब तक थक न जाए
तुम्हारे शिशन की अंदर की भूख
मेरी योनी पर प्रहार करोंगे!
स्त्री हूँ मैं सब कुछ सहने का
असीम साहस भरा मेरे अंदर
प्रसव की कठिन पीड़ा को सहकर भी
नव जीवन में जीवन भरा मैंने!
ऐसे ही किसी स्त्री की योनी से
तुम्हारा भी कभी जन्म हुआ था
ये क्यों तुम भूल चुका है?
तेरी माँ तेरी बहन बस तेरी है
बाकियों की इज्जत करना भूल चुका है
ओ पापी तू इन्सानियत भूल चुका है
खाना भी उतना खाना चाहिए
जितनी की अंदर भूख हो
पर तू तो राक्षस बन चुका है
मर चुकी है तेरी अंत: संवेदनाएं
तेरा जीवित रहना घरती पर बोझ है
कराह रही है अब तो मेरी धरती माँ!
आखिर कबतक द्वितीय लिंग बने रहेंगे
हम बालात्कार का बदला उसकी भी
माँ बहन से क्यों न लेगा मेरा परिवार
नहीं इस बदले में दूसरी स्त्री पीड़ित होगी
ना ना समाज में ऐसा ठीक न होगा
अराजकता चारों ओर ही मचेगी!
न्यायालय ही एक ही रास्ता बचा है
वहाँ भी अब मेरा लड़ना हुआ है मुश्किल
जाऊँ तो जाऊँ मैं मदद के लिए कहाँ
पुलिस और प्रशासन बिक जाते
काली कोट पहनेवाले वाले
मेरे ही चरित्र पर दाग लगाते है
परिवार वाले समाज के डर से
घरों में मुँह छुपाकर छिप जाते है
छेड़छाड़ की बात तो मुँह में ही रह जाती है
बालात्कार होने पर नेता वोट बटोरते है
मीडिया भी बार मुझे नंगा करती है
फिर भी मैं हिम्मत ना हारूँगी!
जरूरी है अब बालिगों से बालात्कार पर
फांसी की ही एकमात्र सजा हो!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना पूर्णियाँ,बिहार

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