Sunday 4 August 2019

"मैं वो न बन सकी"

सीता हो राम की संगिनी
वनवास में भी साथ रहे
दुःख में दुःख अहसास न दे
मैं वो सीता न बन सकी!
श्रापित होकर कई जन्मों कर सकी
न राम की भक्ति अहिल्या सी बनकर
मैंने कि न राम के चरणों की पूजा!
मैं मंदोदरी न बन सकी
जो पति के स्त्रीगामी होने पर भी
पति को ही परमेश्वर माने
मैं साधारण सी स्त्री"अर्चना"रही
जिसको कभी सौतन न भाए!
मैं उर्मिला सी सुहागन होकर भी
विधवा बनकर रह सकी
न जीवनपर्यत पति वापसी में
अश्रूओं को ही पी सकी!
द्रौपदी सी अपमानित होकर
ख़ू का का घूँट पीकर भी
सारा जीवन पंचाली बनकर
मैं कुँवारी न रह सकी!
गोपाल की राधा बनकर
बच्चपन संग न खेल सकी
प्रीत की आग में जल सकी
गोपियों सी स्वच्छंद प्रेम न कर सकी!
मीरा सी कृष्ण बाबरी होकर
बिष के प्याला को भी
मैं पीकर भी न जी सकी
मैं मीरा सी दिवानी न हो सकी!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना पूर्णियाँ,बिहार

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