Saturday 3 August 2019

"ये कैसा रोग मुझे लगा गए"

ये कैसा रोग मुझे लगा गए!
प्रेम देकर भी प्यासा छोड़ गए
ना दिन को चैन ना रात को आराम!
डाॅक्टर भी नब्ज़ पकड़कर
मर्ज की दवा नहीं लिख सकता
दुआ भी ब़ेअसर हो जाती
ये कैसा रोग मुझे लगा गए!
परेशानियों का सबब़ दे गए
सुक़ून की दुनिया उजाड़ गए
आँखो से नींद ले उड़ गए
चेहरे पे उदासी दे गए ओठों की हँसी ले गए
ये कैसा रोग मुझे लगा गए!
प्रेमरोग कहते है इसे खूदनसीब़ो को मिलता है
पत्थर दिल क्या जाने प्यार
किस चिड़िया का नाम है
जिसे होता है वही जानता है
ये कैसा रोग मुझे लगा गए!
कुमारी अर्चना'बिट्टू'
मौलिक रचना पूर्णियाँ,बिहार

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