चालीस की उम्र जवानी के ढ़लने की उम्र
पुरूष इस उम्र में और जवाँ होता
और औरत बुढ़ापे की दहलीज पर!
यौवन की चरम अवस्था के बाद
शरीर की माया का क्षणभंगुर हो जाना
स्त्री तो जीवित रहती है
पर पुरूष की रूचि अरूचि में बदल जाती
एक देह ही तो है जिससे वो
पुरूष से जीवन साथ चाहती है
दूसरी उसकी सेवा है जिससे वो
उसके पूरे परिवार कर पाती है
उनसे सम्मान और प्यार!
स्तनों का कसावट के जाने का संकेत
उसके रूप रंग का फिक्का पड़ना
मनोपाॅज की समय नजदीक आना
पुरूष के लिए बच्चा जनने की
मशीन का बेकार हो जाना है!
उफ् मैं अब बेकार हो गई
उस कुड़े कचरे की तरह
मौले कुचले फटे कपड़े की तरह
जिससे अब पहना न जाएगा
ना सजावट के लिए रखा जाएगा
अब घर के किसी कोने में
अपनी जिंदगी काटनी होगी
ना पति ना ही बच्चे बात सुननेंगे
नोट जो नहीं कमाती हूँ
मुझमे आकर्षण कहा से होगा
जो कमाती है वो बुढ़ापे तक
जवान रहती है पति,प्रेमी के लिए
बच्चों के लिए एटीएम बाद बन जाती
उफ् ये जवानी एक बार ही क्यों आती है
बार बार क्यों नहीं!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना पूर्णियाँ,बिहार
Sunday, 4 August 2019
"चालिस की उम्र"
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