एक बार फिर बरसात होने दो
तुम्हार अहसास को पास होने दो
पास इतना न आओ दूरी मिट जाए
जरा ठहरो थोड़ी शाम होने दो!
बेकरारी तुम्हें है इतना क्यों
चुबन के बिना भी प्यार होने दो
और हमारे फासले को कम होने दो
अभी प्यार की गाड़ी चली है
इससे और जरा तेज होने दो!
जस्मों को मिलाने की जल्दी क्या है
इसे और भी कुरानेपाक़ होने दो
मैं रूहों का मिलन चाहती हूँ
दोनों के बीच कुछ पर्दा रहने दो
अभी मिलन की रात आनी बाकी है
उस रात तक का सब्र रहने दो!
इश्क में जाति,मजहब को न लाओ
इन्सान में अभी भी इन्सान रहने दो
लहू रहता है मेरे जिस्म में और तुम्हारे भी
दिल में अभी भी कुछ जज्बात रहने दो
एक बार फिर से बरसात होने दो!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना पूर्णियाँ,बिहार
Saturday, 3 August 2019
"एक बार फिर से बरसात होने दो"
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