Monday 8 January 2018

"हम क्या कहे तुमसे"

हम क्या कहे
जब तुमने मुँह मोड़ लिया
हम क्या सुनाये
जब आपका जी भर गया
इस बेख़ुदी में हमने
गमों की चादर को
कुछ इस कदर ओड़ लिया
जैसे हिमालय ने बर्फ को
पृथ्वी ने आसमान को!
दर्द की आग में हम
अंदर ही अंदर जलते रहे
जैसे की दिया बाती से!
आश्रुओं की धारा हमारी
आँखों से ऐसे बही
जैसे की नदी में बरसात हो!
निराशा में हम यूँ डूबे रहे
जैसे चाँदनी को काले काले
बादल ढ़के हो!
उदासी में हम पर छाई रही
जैसे पेड़ से बंसत में झड़ते हो पत्ते!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
९/१/१८
मौलिक रचना

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