नारी स्वंय मैं
एक प्रश्न हूँ!
और प्रश्न चिह्न लगा
मेरे वजूद पर!
मैं हूँ भी या नहीं
या केवल पुरूष का
एक अंशमात्र हूँ!
तभी तो मेरी स्वतंत्रता
मेरे अधिकार
मेरा शरीर
मेरा गर्भ
मेरा निर्णय
सब पुरूष के अधीन है
और मैं पराधीन हूँ!
सदियों से सदियों तक
छटपटाहट है पितृसत्तात्मकता से!
अभिव्यक्ति की
विवाह की
गर्भ धारण की
बेटी जनने की
निर्णय लेने की
पूर्ण आजादी से!
मैं कृतज्ञ हूँ
अपने अस्तित्व को बचाने के लिए
और अपने वजूद को
अपने ही अंदर तलासने के लिए
ये मेरे स्वालंबी बनने का सूचक है!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
३०/१२/१७
Saturday 30 December 2017
"नारी स्वंय मैं एक प्रश्न है"
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वाहःहः
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