Tuesday 29 January 2019

"ईश्वर की भक्ति क्यों"

ईश्वर की भक्ति क्यों
क्या ईश्वर ने खुद कहा
ऐ भक्तों मेरी पूजा करो नहीं तो
मैं तुम्हारा बुरा करूँगा!
भले तो तुम बुरा से बुरा कर्म करो
मुझे फल,दूध और मेवा चढ़ाओ
मैं तुम्हारा सदा कल्याण करूँगा!
मैंने आस्तिक बनके देखा और
नास्तिक होकर भी देखा
पर कोई फर्क़ ना पड़ा
मेरे वर्तमान जीवन पर
केवल मन में आशा का संचार
आने वाला भविष्य अच्छा होगा!
श्रद्धा से कोई भक्ति नहीं करता
भय और अशुभ फल की चिंता से
लोगों के एक कर्म हो जाते है
वृद्धावस्था की अवस्था में !
नवधा भक्ति के नौ रूपम श्रवण,
कीर्तन,स्मरण,पादसेवन,
अर्चन, वंदन, दास्य व संख्य,
आत्मनिवेदन सर्वश्रेष्ठ भक्ति है
पर हम कौन सी भक्ति कर रहे
और किस लिए कर रहे है
ये जानना अति आवश्यक है!
किसी भी धर्म में भक्ति का
एक ही अर्थ होता है
सर्व मानवकल्याण करना
फिर क्यों धर्म और संप्रदाय
सीमित दायरे बंध जाते
क्या धर्म का अर्थ इतना छोटा है वेद,उपनिषद,कुरान,बाइबल में
केवल धर्म विशेष पुस्तक भर है!
ईश्वर की भक्ति किसी फल की
न चाह में बल्कि ईश्वर का
"धन्यवादज्ञापन"होनी चाहिए
मनुष्य योनि में जीवन देने के लिए सुख व शांति
व सर्व मानव कल्याण होना चाहिए!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
29/1/19

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