मैं बेरोजगार हूँ
घर में पढ़ा रद्दी अखबार हूँ
कोई गंभीर मुझे लेकर
तो कोई हल्के में पढ़ता
मेरे मन के चेहरे को!
कोई तरस खाता तो
कोई दुतकार देता
मेरी हालत सड़क के
मटरगस्ती करते हुए
आवाराकुत्तों जैसी है!
मैं ही वो पढ़ा लिखा
पीएचडी डिग्री लिया हुआ बेरोजगार हूँ
जो ना मजूरी कर सकता
ना ही मजदूर बन सकता है
पर मजबूर बन सकता है!
मेरा पेट मेरे अभिभावक
बचपन से जवानी तक पालते पोषते है
जैसे कोई फीता कृमी को!
मैं इस वैश्विक दुनिया जहाँ
नौकरियों की भरमार है
मैं वृत्त की तरह अंदर बाहर
गोल गोल घुमता रहता हूँ!
बेरोजगारी के चक्रव्यहू को नहीं भेद पाता हूँ
अभिमन्यु जैसा मारा जाता हूँ
कृष्ण सा बहुतों उपदेश देते है
पर कोई द्रोणाचार्य बनकर
लक्ष्य भेदना सिखाता नहीं
मैं अर्जुन जैसा समर को
विजय नहीं कर पाता हूँ!
हताश होकर हार जाता हूँ
गृहस्थी का बोझ ऊपर डाल
मुझको सुधारा जाता है तो
कभी अधेड़ उम्र तक
यूँ ही धूल फांका रहता हूँ
नौकरी के चक्कर में चप्पल जैसा
मैं घिस जाता हूँ!
शिक्षा व्यवस्था के खस्ता हाल
पर रोता बिलखता हूँ
एक प्रतिशत से भी कम हूँ
ज्यादा प्रतिशत हो जाऊँगा
तो भूखों मर जाऊँगा!
कुमारी अर्चना'बिट्टू'
मौलिक रचना
29/1/19
Tuesday, 29 January 2019
"मैं हूँ बेरोजगार"
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment