Friday, 5 July 2019

"माया हूँ मैं"


मैं स्त्री माया हूँ
दुनिया की माया की तरह
मुझे भी समझना कठिन
साहित्य में रहस्यवाद हूँ
विज्ञान में शोध का विषय
राजनीति में विवाद हूँ
इतिहास में पतन होती
किसी सभ्यता जैसी हूँ
जादूगर की जादू जैसी हूँ!
हाँ माया हूँ मैं काया में लिपटी हूँ
मेरे रूप के मायाजाल में पुरूष फंस जाता है
मेरी ममता में पुत्र आ जाता है
मेरे यौवन के आगोश में पति
अपनी माँ को भूल जाता है
अपनी बहन और बचपन के
साथी को छोड़ देता है
खो जाता है अपनी शुद्धबुद्धि
मेरे मोह पाश में हार जाता है
अपना सब कुछ जैसी युधष्ठिर हार गया था
दुर्योधन अपमान का घुट पिकर
महाभारत युद्ध कराकर भी
अपना सब कुछ हार गया था
हाँ मैंस्त्री रूपी वही द्रोपदी हूँ!
हाँ मैं वही पवित्र सीता हूँ
जिसको पाने के लिए राम से
रावण लंका हार गया था
अग्नीपरीक्षा देकर भी मेरा
स्त्रीत्व पराजित हो गया था!
हाँ,कबीर की वही माया गठनी हूँ
तुलसी के ठोल गंवार,पशु,नारी हूँ
जो ताड़न की अधिकारी हूँ
अर्थर्ववेद में मेरे जन्मनिंदनीय
मैत्रेयनी संहिता में मदिरा तुल्य
पुराण में शुद्र संग वेद न पढ़ने
स्वर्णकाल में गिरती पड़ती
मध्यकाल में बनती वस्तु
आधुनिक काल करती संर्धषरत
इक्कीसवीं सदी की सबला हूँ
मैं माया हूँ मैं!
कुमारी अर्चना "बिट्टू"
मौलिक रचना
पूर्णिया,बिहार

No comments:

Post a Comment