मेरी किस्मत में
अपने ही मौसम में खिलना
और खिल के फिर मुरझाना लिखा है
मेरा जीवन चक्र छोटा है
पर मैं थोड़े वक्त में बड़ा काम कर जाती हूँ
भवरों को रिझाती हूँ
कली से फूल बनती हूँ
फिर भगवान की चरणों में अर्पित होती हूँ
सजवाट के लिए
जन्मदिन से लेकर मृत्यु के
शोक में दी जाती हूँ
प्रेमिका से लेकर पत्नी के बालों में सजती हूँ!
कुसम की पत्तियाँ धीरे धीरे
सूखकर या टूटकर नष्ट हो जाती हूँ
बीज छोड़ जाती हूँ
नयी कुसुम को फिर से खिलने
और मुरजाने के लिए
मेरा वंशावली ऐसे ही चलती है
जैस मानवों का पीढ़ी दर पीढ़ी!
मैं भी कुसुम होना चाहती हूँ
अपने भगवान के चरणों में
थोड़ी सी जगह पा सकूँ
हे भगवान अगले जन्म मुझे
कुसुम ही बनाना तुम्हारों चरणों में
और प्रियतम के पास रह सकूँ
जी भर के उसे प्यार और
खुशबू साँसो में भर सकूँ
अपने होने का अहसास दे सकूँ!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना पूर्णीयाँ,बिहार
Monday, 15 July 2019
"कुसुम हूँ मैं"
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