Friday, 5 July 2019

"जिंदा पिण्डदान"

हिन्दू देहवासन के उपरान्त
पूर्वजों की आत्मा की शांतिस्वरूप
प्रेत योनि से बचाने के लिए
देते उन्हें श्रद्धास्वरूप पिण्डदान
करते स्वर्ग प्राप्ती रास्ता प्रसस्थ!
पृतपक्ष में गया,बिहार में
जो विष्णु का नगरी और मोक्ष भूमि मना गया
भगवान विष्णु स्वंय पृतिदेवता के रूप में
रहते है विराजमान!
वैसे हरिद्वार,कुरूक्षेत्र, गंगासागर,
पुष्कर,चित्रकूट समेत कई जगहों पे
भी पिंड दान किए जाते है!
पुत्र का पुत्रत्व तभी सार्थक है
माता-पिता को पिंडदान करे
परन्तु ये विशेष अधिकार शास्त्रों ने
पुत्री को प्रदान क्यों नहीं किए?
श्राद्ध में जौ व चावल के आटे से
गूंथ कर गोलाकार पिंड
प्रत्येक जीव की अभिरूचि अनुरूप
मीठा,तीखा प्रत्येक स्वाद का पदार्थ से युत्त
अंश तर्पण के लिए श्रेष्ठ होता है!
पिंडदान में शुभकार्य और
गर्भवती स्त्री का प्रवेश वर्जित है
परन्तु जब अपनों के जीते जी
हो जाए संवेदना शुन्य
हृदय के कोणों कोणों में
सुख जाए प्यार की बूँद बूँद
तो क्यों न दे जिंदा पिण्डदान?
जब रिश्तों पर विश्वास न हो
अपनो का अहसास न हो
मिलने की कोई आश न हो
फिर फर्क क्या पड़ता है
वो व्यक्ति जिंदा है या मृत!
फिर क्यों मृत्युउपरांत ही
दिया जाता है पिण्डदान?
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना
पूर्णियाँ,बिहार

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