" मैं हिन्दी"
मैं हिन्दी एक भाषा हूँ
एक संस्कृति हूँ
एक सभ्यता हूँ एक धर्म हूँ!
मैं हिन्दी वर्षो से धूल फांकती
घर का पुराना समान हूँ
अनेकों अनेकों भाषाओं के नीचे दबी रहती हूँ
मेरे भगीनी उर्दू भी मुझे छोड़ चली है
मायका संस्कृत भी पीछे छूट चला
सखी भाषाएं से कट्टी हो चली
अँग्रेजी शौतन बनके
जब मेरे सीने पर चढ़ बैठी !
अपने ही वतन मैं रिफ्यूजी हो चली
अंग्रेज कबके मेरे वतन छोड़ चले
पर आज भी महारानी विक्टोरिया की
शान ओ शौकत चलती है
जब अँग्रेजी भाषा में
भारत की शासनसत्ता चलती है!
मेरी पड़ी धूल झाड़ कर
गंगा जल छिड़कर मुझे शुद्ध करो
वेद मंत्र को पढ़कर मेरा श्रीगणेश करो
प्रथम भाषा का दर्जा और सम्मान दो
तभी आर्यावर्त का मान बढ़ेगा
भारतीयों का शान बढ़ेगा
विश्व में भारत महान बनेगा!
कुमारी अर्चना
पूर्णीयाँ,बिहार
मौलिक रचना©
Saturday 14 September 2019
"मैं हिन्दी"
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment