Wednesday 25 September 2019

"मन की उदासी"

ये मन की उदासी है
या तेरे न होने का खाली अहसास
जो मेरे पुरे औरत होने पर भी
मुझे पुरा न बनाता है!
अंदर ही अंदर कचौटता है
अजान सा भविष्य का भय
अकेले पुरा जीवन काटना होगा
या तुम आकर पूरा करोंगे
मेरे इस मौन व्रत को तोडोंगे!
कब तक तकिया और बिस्तर से
मैं सिमट कर सोऊँगी
कब तक रूमाल से अपने
दर्द को सबसे छुपाऊँगी
कब बाहरी लोगों से दिल बहलाऊँगी
माँ तो समझती है मेरे दर्द
पर वो भी विवश है!
मैंने कसम ही ऐसी खाई है
बस तुमको पाने की और
तुम मेरे कहाँ होने वाले
और कोई दुजा अब दिल को भाता नहीं
शायद कोई तुम जैसा नहीं
जो मुझे इतना प्यार दे सके!
सच कहूँ तो मैं अब किसी को
तुम जैसा प्यार नहीं कर सकती
तुम्हार याद में पागली होती होती रह गई
कवयित्री खुद को बना डाला
अब फिर से किसी से प्यार किया तो
पागल ही हो जाऊँगी और
मुझे पागल नहीं होना है
पागलों को दुनिया भूल जाती है
मैं चाहती हूँ सब मुझे याद रखें!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना
पूर्णियाँ,बिहार

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