आदमी नहीं लड़का वर चाहिए
बापू ऐसो वर ढूढ़ कर लाओ
जब सोलह की बाली उम्र थी
तो तीस पैंतीस का आदमी मिलता
तोंद कुछ बाहर निकली सी
बाल सिर से गायब से
चेहरे पर उम्र साफ झलकता
बातों से परिपक्क सा लगता!
माँ ये तो आदमी है लड़का नहीं
माँ हाथ चमका चमका कहती
मर्दो की भी कोई उम्र देखी जाती है
पिता कहते सुन्दरता से क्या लेना देना है
आदमी है कमा कर खिला ही देगा!
ना,ना मैंने तो सपनों में
राजकुमार को देखा था
जो नौजवान सा था
लंबा चौड़ा सीना
सुन्दर सजीला था
मेरी ही उम्र से मिलता जुलता था
दोस्त जैसा लगता था वो!
माँ -बापू मुझे आदमी जितने बड़े से
शादी ब्याह करके घर नहीं बसाना है
अभी मुझे आगे पढ़ना लिखना है
मैं अभी शादी नहीं करूँगी !
समय वक्त के साथ निकलता गया
मैं पैंतीस की हो आई
फिर लड़का मिलना हुआ मुश्किल हुआ
फिर से ढूढ़ने पर आदमी मिलते!
लड़के तो लड़की से बढ़े ही होगी
लड़की लड़के से चाहे जितनी छोटी
कब तक अनमेल विवाह होते रहेंगे
वो भी केवल एक तरफा ही!
लड़की लड़के से बढ़ी हुई तो
क्या शादी जल्द टूट जाएगा
बच्चे फिर पैदा न होगे संबंध बनाकर आखिर!
ऐसा क्या हो जाएगा
जो लोग पुरातन रीति रिवाज को ढ़ोते है
कानून भी बालिग लड़के के विवाह को इक्कीस
और लड़की के अठारह बना है
फिर जब संबंध बनाने की सीमा नहीं बनी
फिर विवाह में ये सीमा क्यों?
केवल लड़कियों के छोटी होने की!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना
Wednesday, 25 September 2019
"आदमी नहीं लड़का वर चाहिए"
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