Friday 27 September 2019

"ग़ज़ल"

भला दर बदर क्यूँ मैं भटकूं जहाँ में
तेरे दिल में रहने को जब घर मिला है!
न जाने ये कैसा मुकद्दर मिला है
है लम्बा सफ़र और शायर मिला है!
छुपाने से ग़म फ़ायदा अब नहीं
कुछ तेरी आँख में इक समन्दर मिला है!
मैं जितनी दफ़ा दिल लगाई हूँ यारो
मुहब्बत में धोखा ही अक्सर मिला है!
इकट्ठे हुए मेरे भाई ये जो
मेरी माँ के कमरे में जेबर मिला है!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना पूर्णियाँ,बिहार

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