"वो न कभी हिम्मत हारा"
चलते चलते गाड़ी स्टेशन पर रूकने को हुई
वो जल्दबाज़ी में सीढ़ियों पर गिर पड़ा
अपना सुझबुद्ध खो पड़ा
कुछ देर वही पड़ा रहा
लोग का तमाशा बन गया
देख कर लोग चल जाते
पुलिस करवाई के बाद डाॅक्टर ने उसे देखा
कहा बहुत ख़ून बह चुका है
एक टांग काटनी होगी!
बैसाखी अब उसका सहारा है
कुछ समय उसके साथ काटा
पर सारा जिन्दगी के पाँव चाहिए
फिर एम.पी के चरण पकड़े
कुछ कमीशन ले देकर
नकली पाँव राजकुमार को मिले
वो सचमुच का राजकुमार बन गया!
वो नौकरी की तैयारी में छोटे गाँव से
दिल्ली महानगर आया
यूपीएससी की कीचिंग में मेहनत की
फिर प्रारंम्भिक परीक्षा पास की
कई साल पी.टी मेन्स का खेल हुआ
आर्थिक तंगी में कभी दोस्तीं से
तो कभी परिवार का सहारा मिला
कभी बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया
जेआरएफ की स्काॅलरशिप से
उसने आगे की पढ़ाई पीएचडी की
फिर भी सरकारी नौकरी न पा सका
माँ बाप का श्रवण कुमार बनकर
हर वक्त सहायता को तत्पर रहता
पूरे परिवार को लेकर वो चलता है!
मुहब्बत भी की पर नौकरी न मिलने
और परिवार की मर्जी न होने से
विवाह सपना अधुरा ही रह गया
जिन्दगी के लिए एक जीवनसंगीनी
जल्द ही उससे मिले जाए और
नौकर उसका सहारा बने बैसाखी नहीं!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना
Saturday, 14 September 2019
"वो न कभी हिम्मत हारा"
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