Sunday 7 April 2019

"मेरी पाउडर"

मेरा रंग गोरा था
पर माथा श्यामला था
किसी ने कहा खूब उबटन लगाओ
गोरा हो जाएगा कुछ ना हुआ!
फिर किसी ने कहा क्रिम लगा
ऊपर से पाउडर लगाओ
रातों को जाग जाग लगाया
फिर समझ आया पाउडर व क्रिम लगाकर
ना कोई गोरा बना है ना कभी बनेगा
सोर्दय प्रसाधन बस एक छलावा है
माथा श्यामला ही रह गया
पर पाउडर लगाते लगाते मुझे
पाउडर की खुशबू से पहला प्यार हो गया
कभी मुहाँसो को ढ़कने के लिए
तो कभी उसकी खुशबू का
मज़ा के लिए जी भर लगाया
धीरे धीरे मेरी कमजोरी बनता
चला गया गर्मी हो या जाड़ा
हर मौसम में प्रेमी जैसा प्यारा लगाने लगा!
कभी भाइयों के पाउडर छुपाने से
उनको खाने को तैयार हो जाती थी
माँ के मना करने पर मुँह फुला कर बैठ जाती थी!
सब कहते ज्यादा लगाने पर
पाउडर आँखों में चली जाएगी
इसी सलाह सुनकर आग बबुला हो जाती थी मैं
सब मेरे पाउडर के दुश्मन है
छुपा कर रख देती थी सब की नजरों से
फिर रात सज सवँर जाती थी
सब हँसते थे देखो!
इसे रात कौन देखने आने वाला है
दिन भर तो बंदरिया नज़र आती है
रात सुन्दरी श्री देवी पर सच कहूँ तो
मुझे पाउडर लगा नींद अच्छी आती थी
उसकी भिन्नी भिन्नी खुशबू मुझे बहुत भाती थी
आज भी जहाँ जाती पाउड
र मेरी साथ जाती खुशबू बनकर
मेरा जीवन महकाने इसकी खुशबू से
मेरा तन मन ताज़गी सी रहती है!
किसी भी काम को उमंग से करती थी
क्योंकि इसकी खुशबू जो इतनी मधुर है
मैं सुधबुध खो देती हूँ!
आज मेरा माथा भी वक्त के साथ
शरीर के बाकी रंगो सा हो गया!
पर पाउडर से चेहरे पर असमय झुड़ियाँ आ गई
मेरे चेहरे की कांति चली गई!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना

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