Sunday 7 April 2019

"ग़ज़ल"

है कौन शख़्स जो तेरी तक़रीर में नहीं
मैं हूँ फ़क़त तो एक जो तश्हीर में नहीं!
अल्फ़ाज मेरे यूँ ही जिगर चीर देते है
तेजी है ब़र्क सी किसी शमशीर में नहीं!
ताबीर ख़वाब की हो मुक्कमल तुझी से
जाँ मैं जानती हूँ तू मेरी तकदीर में नहीं!
जो बात तेरे हुस्न में है रूबरू सनम
वो आँख की हया तेरी तस्वीर में नहीं!
फौलाद का बना तेरे बाजू कहाँ हो कैद
ताकत किसी भी लोहे की जंजीर में नहीं!
सरहद पे है जवान जिसे फिक्रे जाँ नहीं
तैयार देने जान की ताख़ीर में नहीं!
'बिट्टू' तेरे ये तीर निशाने पे यूँ लगा
रफ्तार जिनकी शोला -ए- तन्वीर में नहीं!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
औपूर्णियाँ,बिहार मौलिक रचना

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