मुढ़न धार्मिक संस्कार
या पाखंड केवल
पैसा कमाने चोचले!
सभी धर्म फिर क्यों नहीं मानते?
व्यावहारिक तो यह है कि
बार बार बाल हटाने से
नये व मजबूत बाल आते!
फिर रीति रिवाज से
विधि विधान से उपनयन क्यों?
जो ना पहने जनऊँ वो शुद्र क्यों?
क्या भगवान ने इन्सान को
जाँत पाँत में धर्म कर्म में बाँट कर भेजा था!
फिर भी धर्मो के बंधन से लोग कर्मबंध जाते हैं
कोई जीवन भर बाल नहीं काटता
दाढ़ी मूँछ को बढ़वाता
मन ही मन अपनी इच्छायें को मारता!
कोई यौवन में गुरू का नाम लेता
कोई ज्ञान का पाठ पढ़ाने मंक बन जाता!
अभी सांसारिक जीवन जिया नहीं
दु:ख कष्ट ना आया उसके पाले में
बैरागी हो साधना में चला गया
तो कोई स्त्री को दैवी बना
खुद उसका भोग किया
ये कैसा है तुम्हारा धर्म?
जहाँ ना खुद जीव मन का जिया
ना अपने मन का किया!
जब ऊपर व्यक्ति के साथ
उसके कर्म जाते तो फिर
आड़बरों का लागलपेट क्यों
जीने दो उसको आडंबर मुक्त!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना
कटिहार,बिहार
Friday 12 April 2019
"क्या ये धर्म है केवल कर्मकांड"
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