एक बहेलिया सुदूर देश से
मेरे गाँव में आया था
चिड़िया को बहलाया
खुली आँखों से सपना दिखाया
फिर सारे पर्र कतर दिए
उसे शहर ले जाकर बेच दिया!
डाली डाली से फुदूकती हुई
चिड़िया के ओठों की जैसी
हँसी ही उड़ा कर ले गया!
नींद आँखों से जैसे चुरा गया
बीती यादें में रोता छोड़ गया
जिन्दग़ी में उसके क्या बचा!
आसूओं में डूबने के सिवा!
समुन्दर की तरह खारी
बंजर सी रेतीली बन चुकी
जिन्दग़ी को ना किस्ती का
ना साहिल का सहारा मिला!
बहेलिया ने ऐसा प्रेमजाल बुना
चुड़िया उम्र भर कैदी होकर
बंदनी ही उसकी बन गई
हाय चिड़िया का फूटा भाग्य
ना बहेलिया दुबारा मिला
ना चिड़िया का धौंसला बसा!
कुमारीअर्चना"बिट्टू"
Friday 13 December 2019
"एक बहेलिया"
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