धारदार नाखूनों वाला
वो जानवर मांद में नहीं
घर की चार दिवारी में रहता है
बिष से भरे उसके दाँत नहीं
पर वह साँप से विषैला है
उसके पंजे शेर से नहीं
पर उसके हाथ से कोई
शिकार छूटता नहीं है
अतड़ियों तक को बाहर कर
क्षत विक्षत कर डालता है
पोस्टमार्टम लायक नहीं छोड़ता
मगरमछ जैसा जिंदा न नगल
शरीर को जिंदा जला डालता
चीता सी उसकी चाल है
वो दो टांगो वाला जीव है
हिरणी को आता देखकर
घात लगाय शियार की तरह
धर दबोच कर चबा जाता है
बेचारी जाल में फंसी चिड़ियाँ
जल बिन मछली सी होकर
तड़प तड़प कर मर जाती
जानवर अपना भेषबदल
भला आदमी बनकर घुम रहा
शर्तक रहे आपकी नन्हीं का
जाने कब शिकार कर लें!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना
Friday, 13 December 2019
"वो जानवर ही तो है"
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