जब जब वो मिलते है
मिटने को दिल करता है
जब भी वो याद आते है
दिल रोने को होता है!
ऐसा जाने क्यों होता है?
बार बार ही होता है
कोई जाने के बाद इतना
क्यों याद आता है?
सारी सुप्त हुई ऐद्रियों की
चेतना जागृति हो उठती है
चेतनाओं से आभास होता है
वह दूर होकर भी पास है
संवेदनाओं का ज्वार भाटा
चढ़ता उतरता ही रहता है!
मन उस मृगमरीचिका के पीछे
भागता ही रहता है
आखिर कब तक चलेगा
जवानी आखरी पड़ाव पर
फिर तो मौत आनी ही है
एक बार फिर मिलन होगा
फिर मिटने को दिल करेंगा
ये सिलसिला चलता रहेगा
सदियों तक हर युगों में
हम तुम मिल कर बिछड़ते रहेंगे!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना
Friday, 13 December 2019
"जब भी मिलते है"
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