तुम्हारे जाने के बाद
पेड़ पौधो को जल देकर
सींचती रहती हूँ तुम्हारी
मौजूदगी सदा देती रहे
बीज से जब नये पौधे उगते है
सोचती तो तुम्हारा नया जन्म हुआ!
जब भी जिंदा रहने के लिए
मेरे फेफड़े फड़फड़ाते है
हवा में साँसे बन बहते हो
तुम जब भी फूलों को
खिलता देखती हूँ उसके
कोमलता तुम्हारा स्पर्श पाती हूँ
जब भी किसी बच्चे को देखती हूँ
उसकी मासूमियत में
नज़र तुम आते हो
कलकलाती लहरों को जब देखती हूँ
हर झौंके के लिलोरों में तुमको पाती हूँ
जब भी पत्तों में हरियाली छाती है
मुझमें नवयौवन भरते हो तुम!
आसमान से गिरती हर एक
ओस की बूँद में मैं तुमको पाती हूँ
सफेद बर्फ के हर कण कण में
ठंडी हवा की बहती शीतलता में
आसाढ़ के काले काले मेघों में
बारिश बनकर जब तुम आते हो
हर जगह तुम ही तुम छा जाते हो!
मौसम बनकर जब तुम आते हो
तुम्हारा प्रकृति रूप धर आना
यह कोई संयोग मात्र नहीं है
ऑक्सजीन तो नाममात्र का तत्व है
जीने के लिए मेरे प्रियवर
मुझमें आत्म स्फूर्ति तुम ही भरते हो!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना
Friday, 13 December 2019
"तुम ही तो हो"
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