Friday 13 December 2019

"सफर मैं हूँ"

सिटी बजी सभी सवारी जैसे
रेल के डिब्बे में बैठ जाते है
आराम से तो कुछ खड़े रहते है
कुछ टिकट के साथ यात्रा करते है
तो कुछ बिन टिकट
किसी को टीटी फाइन कर देता है
कोई गाड़ी रोक कर उतर जाता
कोई दुर्धटना का शिकार हो जाता
तो कोई होशयारी दिखा
मौत को चकमा दे देता है!
जिन्दगी का सफर भी
कुछ ऐसा ही है मेरे दोस्तों
कोई पूरी जिन्दगी गुजराता
कोई बीच में गुजर जाता है
किसी के सपने पूरे होते है
कोई सपना देखता रह जाता!
मैं जिन्दगी के सफ़र में हूँ
बचपन से आती जवानी
अधेर उम्र से छाता बुढ़ापा
ये सफर सतत् चलता ही
चलता जा रहा है एक एक दिन
करके वर्षो कटते जा रहे है
हम खटते जा रहे है
धूप छाँव के सफर में
बरसात की फुहारों में
सुखे की परेशानी में
बाढ़ के गीलेपन में
ठंड की ठुठरन में
महँगाई की मार में
कभी मंदी की सरकार में
हँसी खुशी तो कभी सुख-दुख के
साये में जीवन गुजार देते है!
इस सफर पर एक दिन
पूर्णविराम पड़ जाएगा
गन्तव्यस्थान आ जाएगा
शरीर को इहलोक में छोड़
मेरा आत्मा परमात्मा में
सदा के लिए लीन हो जाएगा
कुछ भी नहीं बचेगा बस
यादे ही बचेगी अपनों के लिए
जो उनको कभी रूलाएगी
तो कभी उनको हँसाएगी!
हम सब यात्री है पृथ्वी ग्रह के
आते और जाते रहते है
कोई सदा के यहाँ नहीं रूकता
अगर लोग रूकने लगे तो रहेंगे
कहाँ ?और खाएगे क्या?
सभी संसाधन सीमित है
वैसे हमारा जीवन भी सीमित है
एक निश्चत अवधि में बंधा हुआ है!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना

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