Sunday 17 December 2017

" हे पार्थ! मेरा थोड़ा भार तुम ले लो"

हे पार्थ!
मेरा अनुनय स्वीकार करो
मेरा थोड़ा भार तुम ले लो!
जैसे मैंने तुम्हारा लिया है
महावारी की पीड़ा
नौ महीने की कोख
प्रसव की असहनीय पीड़ा
शिशु को स्तनपान करवाना
उनका लालन पालन
घर के कामकाज का भार
मेरे ही कंधों पर  है
अब तो मैं बाहरी काज भी करती
  सोचे अगर मैं ये ना लेती तो
तुम इन कार्यो में उलझे रहते
और तुम महापुरूष न बनते!
हे पार्थ!
तुमने सृष्टी के विकास दायित्व लिया है
प्रकृति व मेरी सुरक्षा का भी
पृसत्तात्मकता की वृक्ष वृद्धि का
विज्ञान व अर्थिक विकास का भी
तो परिवार नियोजन के लिए
नसबंदी का भार तुम लें लो!
नहीं तो और संतान होने की
संभावना बनी रहेगा और
तुम पर और भार बढ़ेगा
गर्भनिरोधक गोली बार बार खाने से
मुझ पर प्रभाव पड़ेगा
बार बार गर्भपात कराने से
मेरा स्वास्थ जीर्ण होगा और
मैं मौत के मुँह में जाकर
वापस न आ पाउँगी
तुम तो दूसरी,तीसरी जाने कितनी ही
प्रेयसी व पत्नी मिल जाएगी
पर मेरे लालाओं को माँ का
प्यार दुलार न मिलेगा!
पुरूष नसबंदी के बहुत से फायदे है
एक तो महिलाओं को शाररिक व
मांनसिक अवसाद कम होगा
दूजा पुरूष के स्त्रीगामी होने का
खतरा कम होगें
घरों में गृहकलह कम होगें
तलाक के केस भी कम दर्ज होगें
परिवार का विघटन रूकेगा
साथ जनसंख्या नियंत्रण पर
लगाम कसेगी!
हे पार्थ !
अब तो ले लो मेरा भार
नहीं तो मेरा जीवन दु:खमय व
अवसाद के भव सागर सदा ही
तैरता और उतरा रहेगा!
कुमारी अर्चना
पुर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
१७/१२/१७

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