राधा कृष्ण के बिन
हमेशा आधी ही रही
पूर्णता के लिए
वैवाहिक बंध चाहिए जो
उसे न मिल सका
पर क्यों?
क्या द्वापर युग में
राजा महराजा और
उनकी प्रजा एक पत्नीधारी थे
कोई उपपत्नियाँ नहीं रखते थे
क्या सवाल का कोई जबाब है?
प्रेयसी केवल प्रेम करने व
वासनापूर्ती के लिए होती है
विवाह के लिए नहीं
परन्तु क्यों ?
कृष्ण ने रासलिला तो वृदावन में
राधा और गोपी संग रचाओ
पर मथुरा की पटरानी क्यों न बनाओ!
विष्णुजी को नारद मुनि का श्राप था
रामराज्य में सीता का परित्याग
कृष्ण अवतार में राधा से वियोग!
अपराधी तो कृष्ण था
पर अपराधन क्यों राधा बनी
जो उसे वैराग जीवन मिला
विवाहिता का सुख ना मिला!
सदियों से पुरूषों द्वारा
छलने की एक प्रथा चली आई
आज भी चल रही
प्रेयसी प्रेम व वासनापूर्ति की
वस्तु में तबदिल हो गई
जो मान प्रेयसी राधा को
बिन पत्नी बने मिला
कृष्ण से पहले राधा का नाम जुड़ा
वही आज पुरूष के बाद नाम
जब किसी स्त्री का नाम जुड़ता तो पिता,परिवार,कुल और गोत्र की
नाम व इज्जत चली जाती
कभी गर्लफ्रेंड तो रखनी बन जाती
कहीं ऑनर किलिंग तो
कहीं हत्या कर दी जाती तो
कहीं आत्महत्या को विवश!
समाज ने तो कभी भी प्रेयसी को
धर्मपत्नी का दर्जा न दिया
लोकतांत्रिक देशों की न्यायपालिका ने
प्रेयसी को कानूऩी हक़ दिया
विवाहिता समझी जाएगी
बिन पारम्परिक रीति रिवाजों के भी
यदि पत्नी कर्म निभाती हो!
काश् राधा के युग में
न्याय की सर्वोच्च व
पारदर्शी व्यवस्था होती तो
रूकमनी की जगह राधा होती!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
१९/१२/१७
Tuesday 19 December 2017
"राधा केवल प्रयेसी या और कुछ"
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