Friday 1 December 2017

"अधुरा प्रेमकाव्य"

उससे मोहब्ब़त की चाहत में
जब भी दिल लगाया
कविता को लिखा
जब भी दिल टूटा
कविता को लिखा!
कुछ पन्ने खो गए
कुछ पन्ने रद्दी की
टोकरी में चले गए
कुछ को मैंने जला दिया
कुछ खुद ब खुद
गायब हो गए!
बार बार कलम पकड़ी
बार बार कलम छोड़ी
इसे पकड़ने और छोड़ने के
क्रमवत सिलसिले चलते रहे!
धीरे धीरे मेरे अंदर की
कवयित्री का विकास होता रहा
और निरन्तर ही हो रहा है!
या यूँ कहें कि मोहब्ब़त को पाने
और न मिल पाने की चाहत ने
हमें कवयित्री बना दिया!
जब लक्ष्यवहीन
दिशावहीन थी
मुझे जीवन जीने का
एक उद्देश्य तुम्हारी यादों ने
  "कविता "बन दिया!
इसलिए मेरी कविता
"अधुरा प्रेमकाव्य" है!
कुमारी अर्चना
मौलिक रचना
पूर्णियाँ,बिहार
१/१२/१८

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