Thursday 14 December 2017

"फेसबुक"

चेहरों की वो सुन्दर किताब
जहाँ पन्नों की संख्या तो अनग्नीत होती
अपनों की गिनती अँगुलियों पर होती
सबके चेहरे ऊपर से सुन्दर लगते
अंदर का बातों से पता चलता है!
मानवों के अप्रत्यक्ष संबंध
जो पल में बनते में पल में टूटते
कभी अन्फ्रेंड होने पर तो
कभी ब्लॉक होने पर!
यहाँ भावनाओं की शून्यता तो
कभी अतिव्यापी दिखती
कोई इमोशनल हो जाता तो
कोई इमोशनलफुल बन रह जाता!
फेसबुक पर अपना खाता बनाकर
जब चाहे लॉगआउट से बंद करो
बाद गुप्त पासवर्ड लगा
बेफिक्र हो जाते पर
हैंकर फिर भी हैंक कर लेते है!
हमारा एक मन सदा वही रहता
उसका संदेश आया होगा
शायद मिलने बुलाया होगा
या मोबाइल नम्बर दिया होगा
या इशारे से पता ही अपना बता दें
जाने कितनी ही अल्टी पुल्टी बातें
यकायक मस्तिष्क में दौड़ जाती
जैसे बिन गाड़ी के पटरी पर
अभी उसका सिंगल भी नहीं मिला की
प्यार की गाड़ी दौड़ पड़ी!
और एक वो है जो टाइपपास के लिए
थोड़ा बतिया लिया
आज मुझे स्माइल देती
कल किसी को अपना मोबाइल नम्बर
तो किसी और को कोई फोटो सोटो
किसी से मिलने का समय देती तो
किसी के साथ डेट पर जाती
हे भगवान डार्लिग जवानी निकले
कोई बुढ़िया अम्मा नहीं!
सामने बैठे उस हेडसम का क्या
दिखने में अमीर सा लगता है
एटीएम में लाखों कहता है
पर जेब में फुटी कौड़ी नहीं
ढ़ेर सारी सोपिंग कराएगा कि नहीं
केवल बातों के ही गोलगप्पे खिलाएगा!
सोशल साइट्स पर एक ओर
प्यार के पक्षियों की जुगलबंदी
देखने को मिलता दुसरी ओर
पुराने मित्रों से मेल मिलाप होता
अजनबियों की रूब़रू होने का
बढ़िया सुअवसर भी!
कुछ बातें हँसी ठिठोली की होती
कुछ मोहब्ब़त व नफ़रत की होती
कुछ ज्ञान व मनोरंजन की होती
कुछ सिखने और सिखाने की!
फेसबुक बनाने वाले मार्क तेरा
तहेदिल दिल से शुक्रिया हैं
यूर्जर ने तुम्हें मलामाल कर दिया
फेसबुक के प्रतिदिन यूर्जर बढ़ रहे
वो दिन ज्यादा दूर नहीं है
जब लोगों की शाम व सुबह
फेसबुकी दुनिया से होगी!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
१४/१२/१७

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