Monday 4 December 2017

"अग्नीपरीक्षा"

सीता फिर दौपद्री को
क्यों देने पड़ी अग्नीपरीक्षा
आज भी एक आम स्त्री दे रही!
एक पति के दूर रही
एक पास रही फिर भी
एक सदा साथ रहती है!
दूर तो राम भी अपनी भार्या से रहे
फिर क्यों अपने चरित्र का
कोई प्रमाण नहीं दिया
मर्यादा पुरूषोत्तम राम जो ठहरे
उनके अंदर नैतिक कूट कूट भरी
और सीता के अंदर....!
एक अयोध्या वापस पर
अपनी पवित्रा की परीक्षा दी
एक इन्द्रप्रस्थ की भरी सभा में
सभी सभासदों व गुणीजनों के बीच!
चीर होती स्त्री के लाज बचा ना सके
रो रो कर भगवान कृष्ण को पुकार पड़ी
सीता के लिए जटायू दौड़े  दौड़े आए
और एक आम स्त्री भी रोज पुकार रही
बालिका हो
या युवति हो
या वायोवृद्ध हो
सब एक समाना
अपनी मान सम्मान को
भेडियों से बचाने के लिए देती है
कुछ मिनटों पर अग्नीपरीक्षा!
कभी पिता
तो कभी भाई
कभी रिश्तेदारों
तो कभी पड़ोसियों से
कभी अजनबियों से लूटाती
तो कभी खुद की इज्जत
बचाते बचाते प्राण गवाँ बेठती
तो कभी मार दी जाती या
इन्साफ के इंतजार में
बुढ़ी हो जाती!
क्यों वो सम्मान नहीं दौपदी को
जो सीता को मिला
गलती क्या थी उसकी
जो जीती वस्तु समझ
उसे पाँच पांडवो में बाँटा गया
क्यों पांचाली कहकर आज भी
स्वच्छंद स्त्रियों की खिल्ली उड़ाई जाती
कभी कुलच्छनी
तो कभी वैश्या कहकर
पाँच तो कभी सात पुरूषों के द्वारा
एक ही स्त्री से बारी बारी
संबंध बनाया जाता
बलात्कार हुआ एक क्षण को
भूल भी जाए पर
हैवानों के चेहरे को कैसे भूले
जो रात के अंधेरे में दबे पाँव से
आकर बार बार बलात्कार करते है
उसको सपनों का
उसके वर्तमान
और आने वाले भविष्य का
उसके तन का
और मन का!
कलयुग में कोई कृष्ण बनकर
लाज बचाने को नहीं आएगा
खुद ही उसको अपनी
लाज बचाने के लिए
कृष्ण बनना होगा!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
४/१२/१७

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