Saturday 16 December 2017

"सिंदूर का रंग लाल क्यों"

आखिर सिंदूर का रंग लाल क्यों है
रक्त का रंग भी लाल है
लाल शक्ति का भी प्रतिक है
मन को जल्दी लुभाती है
दूर से ही रूको जाओ
अन्य पुरूषों पर किसी
अपनी और पराई वस्तु की
मरजाद को बताती और
उस स्त्री पर लक्ष्मण रेखा या
सदियों पहले लगी
हम पर दासता का मुहर है
और कुछ...!
प्रकृतिक सिंदूर कमीला की फलियों से बनता और अप्रकृतिक मरक्यूरिक सल्फाइड कहलाता!
हिंदू स्त्री का विवाह एक पुरूष के साथ
सिंदूर से भी होता
ये नाक से माँग तक विवाह पूर्व
विवाह पर माथे से मांग तक
पतिदेव द्वारा भरी जाती
सदा सौभाग उँचा बना रहे
दोनों घरों की परंपरा का मान बना रहे
बाद सुहागिनें भी पहनाती सिंदूर
सदा सुहागन रहने का देती आशिष !
सिंदूर स्त्री की काम इच्छा को भी
उतेजित को भी करता है
क्योंकि विवाह के बाद
परिवार व्यवस्था शुभआरंभ होता
काम इच्छापूर्ती के साथ संतान पाने के
परम उदेश्य की प्राप्ती होती!
छठपर्व पर नाक के ऊपर से माँग तक
स्त्रियाँ एक दुसरे को सिंदूर लगाती
जिस हिंदू धर्म में सिंदूर इतना पवित्र है सिंदूरदानी को उम्रभर सुहागन संभालती
देवी और देवता तक को चढ़ाया जाता
उसी सिंदूर को एक पुरष
कई स्त्रियों की माँग में देता
एक धर्मपत्नी के रहते हुए
कई उप पत्नीयाँ बनाता
ये अपना वो कैसा पति धर्म निभाता
बिन सिंदूर लगाए पुरूष कुवाँरा ही
जिंदगी भर ग़र खुदको विवाहित न कहता! सिंदूर पूरी माँग में लगा कर भी
क्यों बलिकायें व नवयुवतियाँ
कम उम्र में बन जाती विधवाएं
तलाक भी सबसे ज्यादा क्यों
व्यवस्था शादियों में ही होते
क्यों पति के द्वारा धर्मपत्नी को
उपेक्षित छोड़ दिया जाता
बच्चों के रखरखाव खर्च देने में
सदा आना कानी करता
मजबूरन कानूऩ का दरवाजा खटख़टाती तो दुनिया का सबसे लालची इन्सान बन जाती
जो वापस अपने मायके जाती
वो ताना सुनते पक जाती
ग़र बाहर निकल जाती तो
दर बदर की टोकर खाती
सुहागन होकर भी विधवा का जीवन के लिएअभिशप्त होती!
सिंदूर केवल उत्तर भारत में हिंदू स्त्रियों
द्वारा पहना जाता दक्षिण भारत व
पश्चिमी देशों में ये प्रथा प्रचलित नहीं
न ही वो सिंदूर लगाती
न करवाँ व्रत में भूखी प्यासी रहती
फिर भी पतियों व पत्नियों दोनों की उम्र दीर्धयायु होती है!
फिर क्या सिंदूर केवल आर्य प्रदेश की
सीमा में स्त्रियों की स्वच्छंदता की
एक सीमा तय करता है या
पितसत्तात्मक सत्ता का
बचा खुचा अवशेष चिह्न
जो आज के आधुनिक समाज में वैदिक परंपराओं व रीति रिवाजों की
असीम शक्ति को बतता!
पर क्या इसे लगा कर भी
सभी सुहागनें पत्नी धर्म को निभाती है?
क्या कसौटी सारे पैमाने सिर्फ स्त्रियों पर ही लागू होते रहेगें
ये पुरूषों पर आज तक क्यों न लगे!
या तो दोनों पर ही लगाओ
या स्त्रियों को भी इन प्रतिकों की
गुलामी से सदा सदा के लिए
मुक्ती दे दो!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
१७/१२/१७

No comments:

Post a Comment