पेड़ की डाली से जब
सारे के सारे पत्ते झड़ नीचे आते
पेड़ की एक एक डाली के
ऊपर फूल लद जाते!
बसंत के मौसम में ही
पलाश फूल खिलते
जंगल में आग लगाते
और तुम मेरे मन में!
वैसे जब ही तुम आते
मुझ पर फागुन का फाग
पलाश के फूलों से बने
लाल रंग को लगाने
कभी खुशब़ू तो ना देते पर
मेरे मन में सदा तेरे यादों की
बगिया को महकाते
जब भी तुम चले जाते!
अद्धचँद्राकार पंखुडियाँ वैसे
चाँद सा तुम्हारा मुँख
छटा लालवर्ण के फूलों की
सूरज के किरणों से
कनक सी आभा आती!
गहरे लाल फूलों को टेसू कहते
वैसे तुम भी मेरे टेसू हो
जब गुस्से से तुम्हारा चेहरा
लाल लाल हो जाता!
पलाश को तलाश फूलों की रहती
और मुझे तुम्हारी!
वो भी ठूठा पेड़ सा मुक बना रहता
और मैं पत्थर सी बेज़ान मुरत!
फूलों से यौवना हरा रहता
गर्मी कहीं उड़न छू हो जाती
वैसे ही तुम्हारे होने से
मेरी प्राणवायु दीर्धायु हो जाती!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
२८/१२/१७
Wednesday 27 December 2017
"पलाश के फूल"
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