Sunday 3 December 2017

माँ ने पहले बेटी क्यों माँगी

बारह साल हुई की
मेरी पहली महावारी हुई
भय से भयभीत
मेरा बच्पन हुआ
मैं जवान हो गई
अब क्या होगा
मेरी शादी हो जाएगी!
मैंने एक बार माँ को देखा था
कपड़ा बार बार लेते हुए
पूछा था क्यों फाड़ रही हो
सुन्दर साड़ी को
माँ ने कहा जरूरी है
तब नैपकिन बाजार में न आते थे
रूई और पुराना कपड़ा ही
सहारा था उन दिनों का
मुझे वो सब याद आया
धीरे से जा माँ की कान में कहा
वही हुआ है जो तुमको हुआ था
माँ ने कपड़ा देते कहा
साफ कपड़ा रखना है
तुम भी अगले महीने के लिए
पहले से ही कपड़े धो कर
रखने की आदत डालो
ये भरी काम लगा मुझे
क्या हर महीने यही सब करना होगा
मैं चुपचाप देखती रही
आवाजें तो कान में जा रही थी
पर मुझ तक न पहुँच पा रही थी
चेहरे का हँसी कहीं गुल थी
ये तो बहुत बुरा हुआ
इतनी जल्दी कैसे हो गया
मैं बड़ी हो गई हूँ
अभी तो छोटी थी
ये रक्त आते ही
इससे अच्छा होता न आता
मैं बच्ची ही रहती!
कुछ महिलाएं घर आने वाली थी
मेरे फ्रोक पर दाग लग चुका था
माँ ने कहा कपड़े बदल लो
नहीं तो सबको पता चल जाएगा
इस स्थति में किसी को कुछ मत बताना
सिर्फ मुझ से
मैंने मुढ़ी हिला दिया!
एक बार मैंने सिमेंन्ट की बनी खिड़की के
छिद्र में कपड़ा छुपा दिया
कहाँ फेकूँ लेट्ररिन में फेंका तो
जाम हो जाएगा ऐसा माँ ने मना कहा था
मिट्टी में दबा दो या नाले में फेंक दो
मरा हुआ खूऩ है
इसके निकलने से अच्छा रहता है
शरीर की गर्मी बाहर आ जाती
मैं सोचती थी ऐसा कैसे
अभी तो जाड़ा का मौसम है
ठंड लग रही है
मुझे फिर कौन सी
गर्मी बाहर आएगी
बाद समझी थी मैं
माँ कौन गर्मी की बात करती है!
माँ ने देख लिया तो
मुझे खुब दांटा था
बोली ये गंदी चीज है
इसे जहाँ तहाँ मत फेकों
पापा तक को कह दिया
उन्होंने कहा बच्ची है
पर माँ ने कहाँ की बच्ची
गाँव में इतनी में शादी करनी पड़ती
मेरे चचेरी बहन को पंद्रहें वर्ष में
माहवारी हई बस दादी ने कोहराम मचा
उसकी शादी करवा दी!
पेड़ पर मत चढ़ना व छूना
खट्टा मत खाना नहीं तो ज्यादा होगा
आचार मुझे  बहुत पसंद था
लड़कों के साथ बात नहीं
न हँसी मज़ाक करना
नहीं तो बच्चा हो जाएगा!
ऐसे उन्होंने मुझे
डराने के लिए किया था
कहीं मैं कोई गलत कदम न उठा लूँ
मेरी पहली महावारी से दर्द की
मध्यम पीड़ा वरदान में मिली
कुछ लड़कियों को नहीं भी मिलती है
रक्त भी सही आता है
पता भी नहीं चलता
कुछ हुआ भी है पर
चुभता था अंदर कुछ
पेट भी फूल जाता
बुखार भी पेट भी गड़बड़ हो जाता
उल्ला लेटी रहती थी तकिये बल
बिस्तर पर माँ को बहुत चिंता हुई
जैसी की पूर्वधारणा फैली है
मासिक धर्म अनयमित होने व
दर्द होने से बच्चा होने में समस्या होगी
माँ को होता था
मैं उनके विवाह के
दसवें साल पैदा हुई थी
उन्होंने मुझे होम्योपैथी से लेकर
ऐलोपैथी तक सारे डाक्टर को दिखलाया क्लनिक में जब महिलाओं को पता चला
इतनी छोटी लड़की है
पिरियड आ गया
क्या समस्याँ है
ओ दर्द होता है
धोलया करना होगा
डॉक्टरनी हाथ डाल देखेगी
माँ ने कहा अभी शादीशुदा नहीं है
बहुत सारी दवाईयाँ लिखी डॉक्टरनी ने
माँ ने जबर्दस्ती खिलाई
फिर भी मैंने कुछ फेंकी दी
कभी दर्द कमता तो कभी बढ़ता
कभी रक्त की मात्रा ज्यादा
तो कभी कम आती
कभी कभी महीना में दो बार आ जाता
इन उल्टी पुल्टी दवाइयों को खाकर
मेरे मन उब गया
कुछ तो होता नहीं
भगवान से प्रार्थना करती
जल्दी से दर्द छू हो जाए
या बंद ही हो जाए पर नहीं हुआ
बाद एक डॉक्टर ने कहा दर्द तो होगा
यह एक स्वस्थ लक्षण है
कोई बिमारी नहीं
बस खान पान पर ध्यान रखो
इन दिनों आराम करो
नैपकिन प्रयोग करो!
पर बदब़ू बहुत आती
इसकी गंध मुझे न भाँती थी
उल्टी सी जब आती
परफ्यूम अक्सर यहाँ वहाँ छिटा करती
खुब़ नहाती थी
फिर भी गंध अंदर से आती थी!
बाद मैंने पढ़ा किसी लड़के से बात करने से बच्चा नहीं होता
बच्चा तो संबंध बनाने से होता है
बाद मैंने पेड़ पौधों को छूकर
सत्य का परीक्षण किया
क्या मेरे छूने से सूखते है
पर वो न सूखे
वैसे माँ ने पूजा पाठ करने से
मना ना किया था क्योंकि
वो भी करती थी
पर बाद मना करने लगी
तुम भी मत करो
पता नहीं था मुझे
पर मैं नहीं मानने को तैयार हुई
जब पहले करती थी
तो अब क्यों नहीं कर सकती
मैंने कहा जब देवी को होता तो
पवित्र है फिर मैं कैसे अपवित्र
ये सब पण्डितों का ड्रामा है
जो भी ग्रंथ लिखे है
वो हम स्त्रियों ने कहाँ लिखे हैं
सबका सब झूठ है
मन से पूजा होती है!
दर्द तो कम न हुआ
उम्र के साथ कमर व हाथ पाँव तक में
पीड़ा बढ़ती ही गई
कुछ वर्ष के बाद समाप्त भी हो जाएगी
पर एक सवाल जो पहले भी आया था
ये पुरूषों को क्यों नहीं होता
वो कितने आज़ाद है
यहाँ वहाँ कही भी जा सकते
ना नैपकिन साथ रखने की जरूरत
न तारिख याद रखने का झमेला
न कोई भी दर्द न बच्चा पैदा करना
न उनकी सेवा करने की
कितना अच्छे पुरूष होते है
मैं भी पुरूष होती तो
कितना अच्छा होता
न कभी सुसुराल जाती
मम्मी पापा के पास ही सदा रहती
माँ ने पहले बेटी क्यों माँगी
बेटा क्यों नहीं!
माँ ने बताया था तुमको
जान कर माँगा था
मेरा घर के काम में हाथ बटाँओगी
नहीं तो तुम बेटा ही होती
मैं मन मसोर कर रह जाती
गुस्सा भी करती
पर कभी खुद को बेटे से
कम न समझती थी
हर काम में भाईयों से बराबरी की
किसी वस्तु से लेकर पढ़ा लिखाई तक
प्रेम विवाह करँगी
जल्दी शादी न करने की जिद्द भी
दंजा किया करती थी
घर के कामों में भाईयों से
मैं अगर बेटा होती तो
तुम मुझे भी आराम से रखती
पर माँ कहती तुम बेटा तो नहीं
बेटी हो दूसरे घर जाना है
काम धंधा सिख लो
नहीं तो सब मुझे गाली देगी
पर मैं हमेशा बराबरी के
अघिकार की माँग करती
आज भी करती हूँ
पर जान चुकी हूँ
मैं बेटी हूँ और
बेटा बेटी में एक ही अंतर होता
वो है लिंग का
जो मेरे पास नहीं!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
४/१२/१७

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