मेरे बाल जैसे गाल
मुलायम मुलायम से!
मेरा तन जैसे मेरा मन
जैसे संगमरमर हो
नाज़ुक सा!
मेरे ओठ जैसे अंगुलियाँ
पतली पतली मासूम सी!
अब बाजूँ और टाँगो का क्या कहना
पतली रहूँ तो
छरहरी काया
मोटा हो जाऊँ तो
गोल मटोल सी!
ये तो हुई बात
शरीर के बुनावट की
मन की बुनावट तो
अभी बन रही है और
बनती ही रहेगी
बदलती भी रहेगी
वक्त के साथ मेरे साथ!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
१/१२/१७
No comments:
Post a Comment