गाँव में फैली एक पुरानी कहवत है
कोठी जैसा माँगा तो
कोठी हो जाओगें
लकड़ी जैसा मांगोगें
तो पतले हो जाओगे!
फिर क्या था अम्मी ने
खुदा से झटपट माँगी एक मन्नत
कोठी चढ़ाँऊगी अगर बच्चे हुए मोटे
खुब़ खिलाया
घी पिलाया
फिर भी हम मोटे ना हुए
सोच में पड़ गई माँ
डॉक्टर से कहकर
ताकतवाली दवाई लिखवाई
हमने दो दिन में ही चटचट कर देते
फिर बार बार पिलाती पिलाती
अम्मी थक गई
क्योंकि जितना हम खाते पीते
उससे ज्यादा की दौड़ लगाते
फिर एक दिन ऐसा आया
जब हम घर में ज्यादा देर पढ़ने को बैठे
कोठी जैसे हो गए हम!
अम्मा तो खुश हो गई
हमको लेकर गई गाँव
वही मिट्टी की कोठी बनाई
और चढ़ाई
पर हम दु:खी हो गए
हमें भी अनाजों की कोठी जैसी
चर्बी रखने की वस्तु बना दिया
रात दिन यही सोचते
कैसे होगें हम पतले
डाईटिंग साईटिंग सब की
पर टोटके सारे हुए बेअसर
अम्मी ने कोठी जो
मन्नत में माँगी थी!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
२७/१२/१७
Wednesday, 27 December 2017
"अम्मी की कोठी"
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment