तारा,जुगनू और मैं आकाश का टिमटिमाता सितारा हूँ मैं चाँद की रोशनी से चमकता हूँ नहीं तो बुझा हुआ तारा हूँ! जगमगाती रातों का जुगनू हूँ मैं रात के अंधेरे से चमकता हूँ अपनी जिंदगी को ढूढ़ता हूँ! प्यार का घायल परिंदा हूँ मैं तुझसे मिलन आस में जीता हूँ नहीं तो जिंदा लाश हूँ! कुमारी अर्चना पूर्णियाँ,बिहार मौलिक रचना, १३/५/१८
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