Monday 14 May 2018

इच्छाशेष है

बह चले मेरे भाव
भावनाओं के प्रवाह में
अब ना रूकेगें
जाये तू जिस ओर
जाउँगी मैं उसी छोर!
तेरे पदचिह्नों को ढूंढ़ती
अपना रस्ता बनाऊँगी
सब पिछल्लगू कहेंगे
तो कहने दो ना
हँसते तो हँसने दो!
तू चलेगा तो मैं भी चलूँगी
तू दौड़गा तो मैं भी भागूँगी
तू रूकोंगे जहाँ मेरे मंजिल वहाँ पर
परछाई को कब कोई पकड़ पाया है!
मेरे अंर्तमन में दबी
तुझे पाने की इच्छा शेष है
जिसे पाने के लिए मैं और
मेरा मन व्याकूल है!
क्यों दिल से तुझे चाहने की
आज भी इच्छाशेष है
भले तू तन से किसी
और का बन चुका है
फिर भी तुझे अपना बनना की
इच्छाशेष है!
कुमारी अर्चना'बिट्टू'
मौलिक रचना

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