Monday 14 May 2018

ना ना ऐसाना करो

ना ना करो मेरा बलात्कार
मैं तो अबोध सी बच्ची हूँ!
ना ना मत मारो अभी मुझे
जीना बहुत दिनों है!
ना ना रोको कहीं भी
मुझे स्कूल पढ़ने जाना है!
ना ना खेलों मेरे अंगों से
मुझे खिलौनों से खेलना है!
ना ना समझो मुझे देह
मेरे वक्ष अभी उभरे नहीं है!
ना ना देखो ऐसी नजरों से
मेरे नैन अभी नशीले नहीं है!
ना ना पिओ मेरे नाजुक लबों को
अभी तो मैं मासूम कली हूँ!
ना ना तोड़ो ऐसे वैसे तुम
मैं अभी भी सजीव हूँ!
ना ना मुझे बाँटो एक दूसरों में
मैं तो बस" एक"हूँ!
ना ना छिनों मेरा प्यारा जीवन
मुझे बड़ी होकर कुछ बनना है!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
१५/५/१८

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