मैं इतिहास बनना चाहती हूँ
मेरी कलम रूके नहीं
बस चलती रहे...
जिन्दगी की सासों के
अन्तिम क्षणों तक!
तभी इतिहास पन्नों पर
मैं कवयित्री कहलाउँगी
सब कुछ भूल सब को भूल
"मैं"को साधना होगा!
कुमारी अर्चना
पूर्णियाँ,बिहार
मौलिक रचना
15/5/18
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