क्या मेरा अक्स मेरे अंदर छुपा है जो दिखता नहीं दो खुली नंगी आँखों से! इन्हें देखने के लिए मन की आँखें चाहिए पढ़ने के लिए अपना ही अंर्तमन! फिर भी आज तक क्यों ना जान पाई खुद को ना ही पहचान पाई सुना है सब कुछ सच कहता है! कुमारी अर्चना पूर्णियाँ,बिहार मौलिक रचना १५/५/१८
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