Monday 14 May 2018

एक चिठ्ठी

"एक चिठ्ठी तुम्हारे नाम"
मेरे प्रियत्म प्यारे!
प्रित भाव से प्रेमपत्र लिखा रही
आँसूओं को सियाही बनाके
अंदर का दर्द बाहर
शब्दों में उडेल रही!
केवल स्याही का काला
या नीला रंग नहीं
मेरे दर्द लहू बन उभरेगा
जब तुम मुझे दिल से
अपने आसपास हूँ
मेहसूस करोगे मेरे दर्द को
अपना दर्द सा समझोंगे
वरन् ये अनर्गल शब्द नज़र आएगे
और मैं बीती रात की बीती कहानी!
डाकिया से चिठ्ठी मिलते ही
अपना जबाब मुँह जवानी लिखना
कैसे हो तुम मुझसे जुदा होकर
हाल ए दिल बयाँ करना
खुशी में होगें तो मैं ना जलूँगी
गम़ में होगें तो ये ना कहना कि
मैं आसूँओं को न बहाऊँ!
अपने आसपास की बदलती हवा
बदलता मौसम
बदलते हालात
बदलते लोग का
हाल ए जज्बात ब्याँ करना!
क्या तुम भी मेरी तरह
तनहाई को पाते हो
अपने अंदर और बाहर
अकेला कमरा
चुपचाप खिड़की
दिवारों की उदासी
गमसुम सन्नाटे की आती
आहटों को पाते हो
राते छोटी और दिन बड़ा सा लगता है
मिलन की चाह में मन के साथ
आत्मा भी भटकती है और
शरीर बेज़ान सा रहता
बिस्तर पर सिलवटें और
तकीये पर अश्रु की बूँदे
बिखरी रहती है
जब तुम सुबह उठते हो
मेरे ख्वाब से जाग कर!
कुमारी अर्चना
मौलिक रचना
पूर्णियाँ,बिहार

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