दादी ओ दादी
तुम कहाँ गई
मुझ बिन बताये
मुझे तो आज भी लगता है
तुम गाँव गई हो चाचा के पास
खेत देखने कभी गेहूँ कटौनी के लिए
तो कभी धान रोपनी के लिए!
यही सोच मन ही मन धूलती हूँ
अब आओगी पर तुम आती नहीं
सपनों में तुमसे वैसे ही बात करती हूँ
जैसे पहले किया करती थी!
कहते गुजरे लोग सपनों में आते है
और साथ जाने को कहते है तो नहीं जाना चाहिए
माँ बार बार यही कहती है
सोने से पहले हाथ मुँह घोकर सोना चाहिए
नींद अच्छी आएगी साथ बुरे सपने भी नहीं आएगे!
पर तुम तो मेरे सपने में आती हो
पर साथ नहीं ले जाती
मुझे मैं भी तुम्हारी दुनिया देखना चाहती हूँ
जहाँ जाने के बाद लोग कभी नहीं आते!
तुम कान की बहुत पतली थी
जल्दी गुस्सा हो जाती थी
पापा से शिकायत करने पर
फिर क्या था बबाल मचा दिया था
बिट्टू ने कान के परदे फाड़ दिये
पर मैंने तो सिर्फ ऊपरी भाग को खींचा था!
मैं और भाई अनंत शहर क्या पढ़ने को गए
फिर तुमसे ना मिल सके!
परीक्षा थी पापा ने कुछ ना बताया
जब बाद घर आई तो पता चला!
मेरे बड़े अरमान थे तुम्हें बाहरी दुनियाँ ले जाऊँ आधुनिक बनाऊँ सोने के गहने पहनाऊँ
और ना जाने क्या क्या
जो पापा ना कर सके तुम्हारे लिए
वो अपना और अपने परिवार की जरूरतों में
माँ के लिए अपनी जिम्मेदारियों को भूल गए!
पर मेरी स्मृतियों में तुम्हारी याद
तुमको आज भी जिन्दा रखे हुए है
शायद हमेशा रहेगी....!
कुमारी अर्चना"बिट्टू"
मौलिक रचना
Saturday, 4 May 2019
"दादी तम कहाँ गई"
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